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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


मि. केलनबैक ने सिर हिलाया।

यह नहीं कहा जा सकता कि इस प्रयोग का परिणाम बुरा निकला। मैं नहीं मानता कि उससे मेरे लड़को को कोई नुकसान हुआ। उल्टे, मैं यह देख सका कि उन्हें लाभ हुआ। उनमें बड़प्पन का कोई अंश रहा हो, तो वह पूरी तरह निकल गया। वे सबके साथ घुलना-मिलना सीखे। उनकी कसौटी हुई।

इस और ऐसे दूसरे अनुभवो पर से मेरा यह विचार बना है कि माता-पिता की उचित देखरेख हो, तो भले और बुरे लड़को के साथ रहने और पढने से भलो की कोई हानि नहीं होती। ऐसा कोई नियम तो है ही नहीं कि अपने लड़को को तिजोरी में बन्द रखने से वे शुद्ध रहते है और बाहर निकलने से भ्रष्ट हो जाते है। हाँ, यह सच है कि जहाँ अनेक प्रकार के बालक और बालिकाये एकसाथ रहती और पढती है, वहाँ माता-पिता की और शिक्षको की कसौटी होती है, उन्हें सावधान रहना पड़ता है।

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