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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


जब हमने यात्रा शुरू की थी, तब मुझे उपवास समाप्त किये बहुत समय नहीं बीता था। मुझमे पूरी शक्ति नहीं आयी थी। स्टीमर में रोज डेक पर चलने की कसरत करके मैं काफी खाने और खाये हुए को हजम करने का प्रयत्न करता था। लेकिन इसके साथ ही मेरे पैरो की पिंडलियो में ज्यादा दर्द रहने लगा। विलायत पहुँचने के बाद भी मेरी पीड़ा कम न हुई, बल्कि बढ़ गयी। विलायत में डॉ. जीवराज मेंहता से पहचान हुई। उन्हे अपने उपवास और पिडलियो की पीड़ा का इतिहास सुनाने पर उन्होंने कहा, 'यदि आप कुछ दिन के लिए पूरा आराम न करेंगे, तो सदा के लिए पैरो के बेकार हो जाने का डर है।' इसी समय मुझे पता चला कि लम्बे उपवास करने वाले को खोयी हुई ताकत झट प्राप्त करने का या बहुत खाने का लोभ कभी न करना चाहिये। उपवास करने की अपेक्षा छोड़ने में अधिक साबधान रहना पड़ता है और शायद उसमें संयम भी अधिक रखना पड़ता है।

मदीरा में हमे समाचार मिले कि महायुद्ध के छिड़ने में कुछ घडियो की ही देर है। इंग्लैंड की खाडी में पहुँचते ही हमे लड़ाई छिड़ जाने के समाचार मिले और हमे रोक दिया गया। समुद्र में जगह जगह सुरंगे बिछा दी गयी थी। उनसे बचाकर हमे साउदेम्पटन पहुँचाने में एक दो दिन की देर हो गयी। 4 अगस्त को युद्ध घोषित किया गया। 6 अगस्त को हम विलायत पहुँचे।

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