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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


मैंने जवाब दिया, 'मेरा साथ करके सिवा मुसीबत के आपने किसी दिन और कुछ भी अनुभव किया है? और, सत्याग्रह तो ठगे जाने को ही जन्म लेता है? अतएव भले ही यह साहब मुझे ठगे। क्या मैंने आपसे हजारों बार यह नहीं कहा है कि अन्त में तो ठगने वाला ही ठगा जाता है?'

सोराबजी खिलखिलाकर हँस पड़े, 'अच्छी बात है, तो ठगाते रहिये। किसी दिन सत्याग्रह में आप भी मरेंगे और अपने पीछे हम जैसो को भी ले डूबेंगे।'

इन शब्दों का स्मरण करते हुए मुझे स्व. मिस हॉब्हाउस के वे शब्द याद आ रहे है, जो असहयोग आन्दोलन के अवसर पर उन्होंने मुझे लिखे थे, 'सत्य के लिए किसी दिन आपकी फाँसी पर चढना पड़े, तो मुझे आश्चर्य न होगा। ईश्वर आपको, सीधे ही रास्ते पर ले जाय और आपकी रक्षा करे। '

सोराबजी के साथ ऊपर की यह चर्चा तो उक्त अधिकारी के पदारूढ़ होने के बाद आरंभिक समय में हूई था। आरम्भ और अन्त के बीच का अन्तर कुछ ही दिनो का था। किन्तु इसी अर्से में मेरी पसलियो में सख्त सूजन आ गयी। चौदह दिन के उपवास के बाद मेरा शरीर ठीक तौर से संभल नहीं पाया था, पर कवायद में मैं पूरी तरह हिस्सा लेने लगा था और प्रायः घर से कवायद की जगह तक पैदल जाता था। यह फासला दो मील का तो जरूर था। इस कारण से आखिर मुझे खटिया का सेवन करना पड़ा।

अपनी इस स्थिति में मुझे कैम्प में जाना होता था। दूसरे लोग वहाँ रह जाते थे और मैं शाम को वापस घर लौट जाता था। यहाँ सत्याग्रह का प्रसंग खड़ा हो गया।

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