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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

शान्तिनिकेतन


राजकोट से मैं शान्तिनिकेटन गया। वहाँ शान्तिनिकेतन के अध्यापकों और विद्यार्थियों ने मुझ पर अपना प्रेम बरसाया। स्वागत की विधि में सादगी, कला और प्रेम का सन्दुर मिश्रण था। वहाँ मैं काकासाहब कालेलकर से पहले-पहल मिला।

कालेलकर 'काकासाहब' क्यों कहलाते थे, यह मैं उस समय नहीं जानता था। लेकिन बाद में मालूम हुआ कि केशव राव देशपांडे, जो विलायत में मेरे समकालीन थे और जिनके साथ विलायत में मेरा अच्छा परिचय हो गया था, बड़ौदा राज्य में 'गंगानाथ विद्यालय' चला रहे हैं। उनकी अनेक भावनाओं में से एक यह भी थी कि विद्यालय में पारिवारिक भावना होनी चाहिये। इस विचार से वहाँ सब अध्यापको के नाम रखे गये थे। उनमें कालेलकर को 'काका' नाम मिला। फड़के 'मामा' बने। हरिहर शर्मा 'अण्णा' कहलाये। दूसरो के भी यथायोग्य नाम रखे गये। काका के साथी के रूप में आनन्दानन्द (स्वामी ) और मामा के मित्र के नाते पटवर्धन (अप्पा) आगे चलकर इस कुटुम्ब में सम्मिलित हुए। इस कुटुम्ब के उपर्युक्त पाँचो सदस्य एक के बाद एक मेरे साथी बने। देशपांड़े 'साहब' के नाम से पुकारे जाने लगे। साहब का विद्यालय बन्द होने पर यह कुटुम्ब बिखर गया। पर इन लोगों में अपना आध्यात्मिक सम्बन्ध न छोड़ा। काकासाहब भिन्न-भिन्न अनुभव प्राप्त करने में लग गये। इसी सिलसिले में वे इस समय शांतिनिकेतन में रहते थे। इस मंड़ल के एक और सदस्य चिंतामण शास्त्री भी वहाँ रहते थे। ये दोनों संस्कृत सिखाने में हिस्सा लेते थे।

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