लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

Like this Hindi book 0

महात्मा गाँधी की आत्मकथा

लक्षमण झूला


जब मैं पहाड़ से दीखने वाले महात्मा मुंशीराम जी के दर्शन करने और उनका गुरुकुल देखने गया, तो मुझे वहाँ बड़ी शांति मिली। हरिद्वार के कोलाहल और गुरुकुल की शांति के बीच का भेद स्पष्ट दिखायी देता था। महात्मा ने मुझे अपने प्रेम से नहला दिया। ब्रह्मचारी मेरे पास से हटते ही न थे। रामदेवजी से भी उसी समय मुलाकात हुई और उनकी शक्ति का परिचय मैं तुरन्त पा गया। यद्यपि हमे अपने बीच कुछ मतभेद का अनुभव हुआ, फिर भी हम परस्पर स्नेह की गाँठ से बँध गये। गुरुकुल में औद्योगिक शिक्षा शुरू करने की आवश्यकता के बारे मैं रामदेव और दूसरे शिक्षकों के साथ मैंने काफी चर्चा की। मुझे गुरुकुल छोड़ते हुए दुःख हुआ।

मैंने लछमन झूले की तारीफ बहुत सुनी थी। बहुतो ने मुझे सलाह दी कि ऋषिकेश गये बिना मैं हरिद्वार न छोडूँ। मुझे वहाँ पैदल जाना था। इसलिए एक मंजिल ऋषिकेश की ओर दूसरी लछमन झूले की थी।

ऋषिकेश में अनेक संन्यासी मुझ से मिलने आये थे। उनमें से एक को मेरे जीवन में बड़ी दिलचस्पी पैदा हुई। फीनिक्स मंडल मेरे साथ था। उन सबको देखकर उन्होंने अनेक प्रश्न पूछे। हमारे बीच धर्म की चर्चा हुई। उन्होंने देखा कि मुझमे धर्म की तीव्र भावना है। मैं गंगा स्नान करके आया था, इसलिए शरीर खुला था। मेरे सिर पर न शिखा और जनेऊ न देखकर उन्हें दुःख हुआ और उन्होंने मुझ से कहा, 'आप आस्तिक होते हुए भी जनेऊ और शिखा नहीं रखते है, इससे हमारे समान लोगों को दुःख होता है। ये दो हिन्दू धर्म की बाह्य संज्ञाये है और प्रत्येक हिन्दू को इन्हें धारण करना चाहिये।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book