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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

आश्रम की झांकी


मजदूरो की बात को आगे बढाने से पहले यहाँ आश्रम की झाँकी कर लेना आवश्यक है। चम्पारन में रहते हुए भी मैं आश्रम को भूल नहीं सकता था। कभी कभी वहाँ हो भी आता था।

कोचरब अहमदाबाद के पास एक छोटा सा गाँव है। आश्रम का स्थान इस गाँव में था। कोचरब में प्लेग शुरू हुआ। आश्रम के बालकों को मैं उइस बस्ती के बीच सुरक्षित नहीं रख सकता था। स्वच्छता के नियमों का अधिक से अधिक सावधानी से पालन करने पर भी आसपास की अस्वच्छता से आश्रम को अछूता रखना असमभव था। कोचरब के लोगों से स्वच्छता के नियमों का पालन कराने की अथवा ऐसे समय उनकी सेवा करने की हममे शक्ति नहीं थी, हमारा आदर्श तो यह था कि आश्रम को शहर या गाँव से अलग रखे, फिर भी वह इतना दूर न हो कि वहाँ पहुँचने में बहुत कठिनाई हो। किसी न किसी दिन तो आश्रम को आश्रम के रूप में सुशोभित होने से पहले अरनी जमीन पर खुली जगह में स्थिर होना ही था।

प्लेग को मैंने कोचरब छोड़ने की नोटिस माना। श्री पूंजाभाई हीराचन्द आश्रम के साथ बहुत निकट का सम्बन्ध रखते थे और आश्रम की छोटी बड़ी सेवा शुद्ध और निरभिमान भाव से करते थे। उन्हें अहमदाबाद के कारबारी जीवन का व्यापक अनुभव था। उन्होंने आश्रम के लिए जमीन खोज तुरन्त ही कर लेने का बीड़ा उठाया। कोचरब के उत्तर दक्षिण के भाग में मैं उनके साथ घूमा। फिर उत्तर की ओर तीन चार मील दूर कोई टुक़डा मिल जाय तो उसका पता लगाने की बात मैंने उनसे कही। उन्होंने आज की आश्रमवाली जमीन का पता लगा लिया। वह जेल के पास है, यह मेरे लिए खास प्रलोभन था। सत्याग्रह आश्रम में रहने वाले के भाग्य में जेल तो लिखा ही होता है। अपनी इस मान्यता के कारण जेल का पड़ोस मुझे पसन्द आया। मैं यह तो जानता ही था कि जेल के लिए हमेशा वही जगह पसन्द की जाती है जहाँ आसपास स्वच्छ स्थान हो।

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