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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


शुरु के दिनो में लोगों में खूब हिम्मत दिखायी देती थी। शुरू-शुरू में सरकारी कारवाई भी कुछ ढीली थी। लेकिन जैसे-जैसे लोगों की ढृढता बढ़ती मालूम हुई, वैसे-वैसे सरकार को भी अधिक उग्र कार्यवाई करने की इच्छा हुई। कुर्की करनेवालो ने लोगों के पशु बेच डाले, घर में से जो चाहा सो माल उठाकर ले गये। चौथाई जुर्माने की नोटिस निकली। किसी-किसी गाँव की सारी फसल जब्त कर ली गयी। लोगों में घबराहट फैली। कुछ ने लगान जमा करा दिया। दूसरे मन-ही-मन यह चाहने लगे कि सरकारी अधिकारी उनका सामान जब्त करके लगान वसूल कर ले तो भर पाये। कुछ लोग मर-मिटनेवाले भी निकले।

इसी बीच शंकरलाल परीख की जमीन का लगान उनकी जमीन पर रहनेवाले आदमी ने जमा करा दिया। इससे हाहाकार मच गया। शंकरलाल परीख ने वह जमीन जनता को देकर अपने आदमी से हूई भूल का प्रायश्चित किया। इससे उनकी प्रतिष्ठा की रक्षा हुई और दूसरो के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत हो गया।

भयभीत लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए मोहनलाल पंडया के नेतृत्व में मैंने एक ऐसे खेत में खड़ी फसल को उतार लेने की सलाह दी, जो अनुचित रीति से जब्त किया गया था। मेरी दृष्टि में इससे कानून का भंग नहीं होता था। लेकिन अगर कानून टूटता हो, तो भी मैंने यह सुझाया कि मामूली से लगान के लिए समूची तैयार फसल को जब्त करना कानूनन् ठीक होते हुए भी नीति के विरुद्ध है और स्पष्ट लूट है, अतएव इस प्रकार की जब्ती का अनादर करना हमारा धर्म है। लोगों को स्पष्ट रूप से समझा दिया था कि ऐसा करने में जेल जाने और जुर्माना होने का खतरा है। मोहनलाल पंडया तो यही चाहते थे। सत्याग्रह के अनुरूप किसी रीति से किसी सत्याग्रही के जेल गये बिना खेड़ा की लड़ाई समाप्त हो जाय, यह चीज उन्हें अच्छी नहीं लग रही थी। उन्होंने इस खेत का प्याज खुदवाने का बीड़ा उठाया। सात-आठ आदमियो ने उनका साथ दिया।

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