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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


विदुषी डॉ. बेसेंट के 'होम रुल' के तेजस्वी आन्दोलन ने उसका स्पर्श अवश्य किया था, लेकिन कहना होगा कि किसानो के जीवन में शिक्षित समाज का और स्वयंसेवको का सच्चा प्रवेश तो इस लड़ाई से ही हुआ। सेवक पाटीदारो के जीवन में ओतप्रोत हो गये थे। स्वयंसेवको को इस लड़ाई में अपनी क्षेत्र की मर्यादाओ का पता चला। इससे उनकी त्यागशक्ति बढ़ी। इस लड़ाई में वल्लभभाई ने अपने आपको पहचाना। यह एक ही कोई ऐसा-वैसा परिणाम नहीं है। इसे हम पिछले साल संकट निवारण के समय और इस साल बारडोली में देख चुके है। इससे गुजरात के लोक जीवन में नया तेज आया, नया उत्साह उत्पन्न हुआ। पाटीदारो को अपनी शक्ति को जो ज्ञान हुआ, उसे वे कभी न भूले। सब कोई समझ गये कि जनता की मुक्ति का आधार स्वयं जनता पर, उसकी त्यागशक्ति पर है। सत्याग्रह ने खेड़ा के द्वारा गुजरात में अपनी जड़े जमा ली। अतएव यद्यपि लड़ाई के अन्त से मैं प्रसन्न न हो सका, तो भी खेड़ा की जनता में उत्साह था। क्योंकि उसने देख लिया थी कि उसकी शक्ति के अनुपात में उसे कुछ मिल गया है और भविष्य में राज्य की ओर से होनेवाले कष्टो के निवारण का मार्ग उसके हाथ लग गया है। उनके उत्साह के लिए इतना ज्ञान पर्याप्त था। किन्तु खेड़ा की जनता सत्याग्रह का स्वरुप पूरी तरह समझ नहीं सकी थी। इस कारण उसे कैसे कड़वे अनुभव हुए, सो हम आगे देखेंगे।

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