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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


इस प्रकार मन्थन-चिन्तन चल रहा था कि इतने में समाचार मिला कि बिल कानून के रूप में गजट में छप गया है। इस खबरो के बाद की रात को मैं विचार करते-करते सो गया। सवेरे जल्दी जाग उठा। अर्धनिद्रा की दशा रही होगी, ऐसे में मुझे सपने में एक विचार सूझा। मैंने सवेरे ही सवेरे राजगोपालाचार्य को बुलाया और कहा, 'मुझे रात स्वप्नावस्था में यह विचार सूझा कि इस कानून के जवाब में हम सारे देश को हड़ताल करने की सूचना दे। सत्याग्रह आत्मशुद्धि की लड़ाई है। वह धार्मिक युद्ध है। धर्मकार्य का आरम्भ शुद्धि से करना ठीक मालूम होता है। उस दिन सब उपवास करे और काम-धंधा बन्द रखे। मुसलमान भाई रोजे से अधिक उपवास न करेंगे, इसलिए चौबीस घंटो का उपवास करने की सिफारिश की जाये। इसमे सब प्रान्त सम्मिलित होगे या नहीं, यह तो कहा नहीं जा सकता। पर बम्बई, मद्रास, बिहार और सिन्ध की आशा तो मुझे है ही। यदि इतने स्थानो पर भी ठीक से हड़ताल रहे तो हमें संतोष मानना चाहिये। '

राजगोपालाचार्य को यह सूचना बहुत अच्छी लगी। बाद में दूसरे मित्रों को तुरन्त इसकी जानकारी दी गयी। सबने इसका स्वागत किया। मैंने एक छोटी सी विज्ञप्ति तैयार कर ली। पहले 1919 के मार्च की 30वीं तारीख रखी गयी थी। बाद में 6 अप्रेल रखी गयी। लोगों को बहुत ही थोडे दिन की मुद्दत दी गयी थी। चूंकि काम तुरन्त करना जरूरी समझा गया था, अतएव तैयारी के लिए लम्बी मुद्दत देने का समय ही न था।

लेकिन न जाने कैसे सारी व्यवस्था हो गयी। समूचे हिन्दुस्तान में - शहरो में औऱ गाँवो में - हडताल हुई ! वह दृश्य भव्य था !

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