लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

Like this Hindi book 0

महात्मा गाँधी की आत्मकथा

वह सप्ताह - 2


मैं कमिश्नर ग्रिफिथ साहब के कार्यालय में गया। उनकी सीढी के पास जहाँ देखा वहीं हथियारबन्द सैनिको को बैठा पाया, मानो लड़ाई के लिए तैयार हो रहे हो ! बरामदे में भी हलचल मची हुई थी। मैं खबर देकर ऑफिस में पैठा, तो देखा कि कमिश्नर के पास मि. बोरिंग बैठे हुए है।

मैंने कमिश्नर से उस दृश्य का वर्णन किया, जिसे मैं अभी -अभी देखकर आया था। उन्होंने संक्षेप में जवाब दिया, ' मैं नहीं चाहता था कि जुलूस फोर्ट की ओर जाये। वहाँ जाने पर उपद्रव हुए बिना न रहता। और मैंने देखा कि लोग लौटाये लौटनेवाले न थे। इसलिए सिवा घोड़े दौड़ाने के मेरे पास दूसरा कोई उपाय न था।'

मैंने कहा, 'किन्तु उसका परिणाम तो आप जानते थे। लोग घोडो के पैरा तले दबने से बच नहीं सकते थे। मेरा तो ख्याल है कि घुडसवारो की टुकड़ी भेजने की आवश्यकता ही नहीं थी।'

साहब बोले, 'आप इसे समझ नहीं सकते। आपकी शिक्षा का लोगों पर क्या असर हुआ है, इसका पता आपकी अपेक्षा हम पुलिसवालो को अधिर रहता है। हम पहले से कड़ी कार्रवाई न करे, तो अधिक नुकसान हो सकता है। मैं आपसे कहता हूँ कि लोग आपके काबू में भी रहने वाले नहीं है। वे कानून को तोड़ने की बात तो झट समझ जायेगे समझ जायेगे, लेकिन शान्ति की बात समझना उनकी शक्ति से परे है। आपके हेतु अच्छे है, लेकिन लोग उन्हें समझेगे नहीं। वे तो अपने स्वभाव का ही अनुकरण करेगे।'

मैंने जवाब दिया,' किन्तु आपके और मेरे बीच जो भेद है, सो इसी बात में है। मैं कहता हूँ कि लोग स्वभाव से लड़ाकू नहीं, बल्कि शान्तिप्रिय है।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book