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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


मैंने चरखे की बात सुनाई और कहा, 'मैं आपके विचारो से सहमत हूँ। मुझे मिलो की दलाली नहीं करनी चाहिये। इससे फायदे के बदले नुकसान ही है। मिलो का माल पड़ा नहीं रहता। मुझे तो उत्पादन बढाने में और उत्पन्न हुए कपड़े को खपाने में लगना चाहिये। इस समय मैं उत्पादन के काम में लगा हुआ हूँ। इस प्रकार की स्वदेशी में मेरा विश्वास है, क्योंकि उसके द्वारा हिन्दुस्तान की भूखो मरनेवाली अर्ध-बेकार स्त्रियो को काम दिया जा सकता है। उनका काता हुआ सूत बुनवाना और उसकी खादी लोगों को पहनाना, यही मेरा विचार है और यही मेरा आन्दोलन है। मैं नहीं जानता कि चरखा आन्दोलन कहाँ तक सफल होगा। अभी तो उसका आरम्भ काल ही है, पर मुझे उसमें पूरा विश्वास है। कुछ भी हो, उसमें नुकसान तो है ही नहीं। हिन्दुस्तान में उत्पन्न होने वाले कपड़े में जितनी वृद्धि इस आन्दोलन से होगी उतना फायदा ही है। अतएव इस प्रयत्न में आप बताते है वह दोष तो है ही नहीं।'

'यदि आप इस रीति से आन्दोलन चलाते हो, तो मुझे कुछ नहीं कहना है। हाँ, इस युग में चरखा चल सकता है या नहीं, यह अलग बात है। मैं तो आपकी सफलता ही चाहता हूँ।'

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