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धर्म एवं दर्शन >> सुग्रीव और विभीषण

सुग्रीव और विभीषण

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9825

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सुग्रीव और विभीषण के चरित्रों का तात्विक विवेचन


यह रावण का भेदिया है, इसे बाँधकर रख लीजिए। प्रभु ने कहा कि मित्र! तुमने मुझसे नहीं पूछा कि मुझे क्या लगता है? सुग्रीव ने कहा कि महाराज! आपने सब विशेषताएँ हैं, पर आपमें खरे-खोटे की पहचान नहीं है। हनुमान् जी ने सुना और समझ गये कि अगर खरे-खोटे की परख होती तो सुग्रीव को शरण में ले सकते थे क्या? प्रभु ने विनोद करते हुए कहा कि मित्र! हमारी और तुम्हारी दोनों की आँखें कमजोर हैं। तुम तो कह ही रहे हो कि आपको खरे-खोटे की परख नहीं है और तुम्हारी तो आँख भी कमजोर ही है, क्योंकि तुमने मुझको भी पहले देखा था तो बालि का भेजा हुआ समझ लिया था, तुम भेदिया जल्दी मान लेते हो। तुमने हनुमान् जी से ही कहा था कि जाकर पता लगाओ। हनुमान् की आँखें ठीक हैं, इन्हीं से पूछ लिया जाय कि विभीषण उनकी दृष्टि में कैसा है? तब प्रभु एवं सुग्रीव ने हनुमान् जी की ओर देखा, दोनों हनुमान् जी से समर्थन चाहते हैं। हनुमान् जी अगर कह दें कि विभीषण अच्छे हैं तो सुग्रीव का खण्डन होता है और कह दें कि विभीषण बुरे हैं तो प्रभु का खण्डन होता है। हनुमान् जी ने बुद्धिमानी से उत्तर देते हुए कहा कि महाराज! यह प्रश्न ही ठीक नहीं है कि विभीषण खोटे हैं या खरे? शरणागति न्यायालय है कि औषधालय है? यदि न्यायालय है तो न्याय कीजिए और अगर औषधालय है तो दया कीजिए। कोई औषधालय में आये तो उससे यह मत पूछिये कि उसका स्वास्थ्य ठीक है कि नहीं। अगर ठीक होता तो बेचारा आता ही क्यों? रोगी को देखकर दवा ही देनी चाहिए। मैं तो यही कहूँगा कि –

खोटो खरो सभीत पालिये सो, सनेह सनमान सों। -गीतावली 5/33/3

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