लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> सुग्रीव और विभीषण

सुग्रीव और विभीषण

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9825

Like this Hindi book 0

सुग्रीव और विभीषण के चरित्रों का तात्विक विवेचन


अरे! सुग्रीव कहाँ के राजा हैं? राज्य भी छिन गया, पत्नी भी छिन गयी, न तो वे बेचारे कहीं के राजा थे, न कोई सम्पत्ति थी, न कोई परिवार था, पर हनुमान् जी ने उनका जब परिचय दिया तो यही कहकर दिया कि वे बन्दरों के राजा हैं। हनुमान् जी ने श्रीराम के शब्दकोश से उनको राजा कहा था, क्योंकि जब श्रीराम का राज्य छिन गया तो उन्होंने कौसल्या अम्बा से कहा था कि –

पिताँ दीन्ह मोहि कानन राजू। 2/52/6

जैसे राजा आप हैं, वैसे ही राजा ये भी हैं। पुनः कहा कि सुग्रीव आपके दास हैं तो कौन-सी दासता की है, कौन-सी सेवा की है? हनुमान् जी ने कहा कि प्रभो! आपके यहाँ दास की जो परिभाषा है, उसके अनुसार मैंने ठीक कहा। संसार में तो दास उसको कहते हैं कि जो सेवा करे, लेकिन आप जिस प्रकार के सेवकों की खोज में रहते हैं, उसका रहस्य श्रीभरत ने खोल दिया, उन्होंने चित्रकूट में कहा कि प्रभु! ऐसे स्वामी तो मिलेंगे जो सेवक को सेवा करने के लिए खोजते हैं, लेकिन आपके जैसा स्वामी कहाँ मिलेगा कि जो –

को साहिब सेवकहि नेवाजी। 2/298/5

भगवान् के मन में हुआ कि हम सेवा करें। भगवान् ने सोचा कि स्वामी बनकर सेवा करें कि सेवक बनकर? बड़ी दूर तक उन्होंने सोचा कि जब मैं सेवक बनकर जाऊँगा और किसी जीव से कहूँगा कि मैं सेवा करना चाहता हूँ तो यह सुनकर वह बेचारा तो घबड़ा जायेगा कि हम कैसे आपकी सेवा लें? हम आपसे सेवा नहीं ले सकते। इसलिए प्रभु ने सोचा कि पहले तो हम स्वामी बनें और स्वामी बनकर जीव से पूछें कि मेरी आज्ञा का पालन करोगे? हाँ, महाराज! जब हम सेवक हैं तो आज्ञा मानेंगे ही –

अग्या सम न सुसाहिब सेवा। 2/300/4

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book