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विजय, विवेक और विभूति

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9827

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विजय, विवेक और विभूति का तात्विक विवेचन


जो भगवान् राम की विजय की कथा कहेगा या सुनेगा उसको केवल विजय ही नहीं मिलेगी, बल्कि दो वस्तुएँ और भी मिलेंगी और वे हैं विभूति और विवेक।  विभीषण के सन्दर्भ में देखिए तो विभीषण को एक ओर लंका का ऐश्वर्य मिला, लंका का राज्य मिला, यह व्यावहारिक पक्ष है। यदि कोई व्यक्ति व्यावहारिक या भौतिक कामना से पाठ करता है तो उसकी भौतिक कामना भी पूर्ण हो सकती है। इसके साथ-साथ जो दूसरे बड़े महत्त्व का पक्ष है, वह यह है कि विभीषण को भगवान् ने केवल विभूति ही नहीं दी, उनके विवेक भी दिया। यही महत्वपूर्ण संकेत आपको ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ के सन्दर्भ में तथा ‘गीता’ में भी मिलेगा।

यदि कौरव-पाण्डव युद्ध बिना गीता-ज्ञान के हुआ होता तो भी यह मानना पड़ेगा कि अर्जुन इतना पराक्रमी था कि जीत पाण्डवों की ही होती, परन्तु आप पढ़ते हैं कि युद्ध के पहले अर्जुन को जब धर्म के प्रति, कर्त्तव्य के प्रति संशय हुआ, भ्रम हुआ, तब उसका कितना कल्याणकारी परिणाम हुआ। दुर्योधन में और अर्जुन में यही अन्तर है। दुविधा दुर्योधन के मन में भी है और अर्जुन के मन में भी है। बुरे व्यक्ति के मन में तो दुविधा होती ही नहीं, वह तो निःशंक हो करके मनमाना कार्य करता है, पर अर्जुन नरावतार हैं, उनके मन में कोमलता है, भावुकता है और उसके मन में यह प्रश्न आता है कि इस महान् युद्ध का प्रयोजन क्या है? अर्थ क्या है? भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन से जो कहा उसका एक पक्ष तो यही है कि तुम युद्ध में विजय प्राप्त करके राज्य के स्वामित्व को प्राप्त करो, भौतिक अर्थ तो यही है, किन्तु ‘गीता’ में अट्ठारह अध्याय हैं, उनमें कितने श्लोक ऐसे मिलेंगे जिनमें भगवान् ने अर्जुन को उत्साहित किया कि तुम युद्ध जीतो और पृथ्वी का भोग करो। ‘गीता’ के इतने विस्तार में भगवान् ने अर्जुन को क्या दिया?

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