लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले

मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :61
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9833

Like this Hindi book 0

समय सदा एक जैसा नहीं रहता। वह बदलता एवं आगे बढ़ता जाता है, तो उसके अनुसार नए नियम-निर्धारण भी करने पड़ते हैं।

साधनों से भी अधिक  सद्गुणों की आवश्यकता

जहाँ भी आवश्यकताओं और अभावों की चर्चा होती है, वहाँ साधन-संवर्धन के लिए प्रयत्नरत होने का सुझाव दिया जाता है। इसमें कुछ अनुचित भी नहीं है। बढ़े हुए साधनों के सहारे अनेकों उपयोगों कार्य किए जा सकते हैं। इसलिए आप्तजन ''सौ हाथों से कमाने'' का उत्साह उभारते रहे हैं, पर उनके साथ ही ''हजार हाथों से खर्च करने'' का निर्देश भी दिया जाता है। यहाँ दुरुपयोग कर गुजरने के लिए नहीं, वरन् सदाशयता भरे प्रगतिशील प्रयोजनों के लिए उस उपार्जन को नियोजित करने के लिए प्रोत्साहन दिया गया है। वैसा अनावश्यक संचय न किया जाए, जिसकी परिणति आमतौर से दुर्व्यसनों के लिए ही होती है, जो ईर्ष्या उभारती है और दूसरों को भी उसी अवांछनीय मार्ग पर चल पड़ने के लिए बरगलाती है।

पारा पचता नहीं। वह शरीर के विभिन्न अंगों में से फूट-फूट कर निकलता है। इसी प्रकार अनावश्यक और बिना परिश्रम का कमाया हुआ अथवा निष्ठुरता की मानसिकता से विलासिता, जैसे दुष्प्रयोजनों में उड़ाया गया धन, हर हालत में अनर्थ ही उत्पन्न करेगा। इसके दुष्परिणाम ही सामने आएँगे। खुले तेजाब को, जलती आग को कोई कपड़ों में लपेट कर नहीं रखता। इसी प्रकार उत्पादन में लगी हुई पूँजी के अतिरिक्त, निजी खर्च के लिए मौज मजे में उड़ाने के लिए कुछ व्यय जमा नहीं किया जाना चाहिए, अन्यथा उससे मात्र गलत परंपराएँ ही जन्म लेंगी। अमीरों की संतानें, आमतौर से आरामतलब, निकम्मी और दुर्गुणी ही देखी गई हैं। जो कुछ परिश्रमपूर्वक ईमानदारी से नहीं कमाया गया है, जिसे उपयोगी प्रयोजन में लगाने से रोककर अनियंत्रित संकीर्ण स्वार्थपरता के लिए जमा कर रखा गया है, उसकी अवांछनीय प्रतिक्रिया न केवल संचयकर्ता को, वरन् उससे किसी भी रूप में प्रभावित होने वाले को भी पतनोन्मुख प्रवृत्तियों में धकेले बिना न रहेंगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book