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आचार्य श्रीराम शर्मा >> मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले

मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :61
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9833

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समय सदा एक जैसा नहीं रहता। वह बदलता एवं आगे बढ़ता जाता है, तो उसके अनुसार नए नियम-निर्धारण भी करने पड़ते हैं।

हाथी पर अंकुश न लगे, तो वह खेत-खलिहानों को रौंदता, पेड़ पौधों को उखाड़ता और झोपडी को धराशायी करता चला जाएगा। उसकी चपेट में जो प्राणी आ जाएँगे, उनकी भी खैर नहीं। संपदा भी उन्मत्त हाथी की तरह है, जिस पर उदारता का अंकुश आवश्यक है। यदि झरने के पानी का सीधे रास्ते से निकलना रोक दिया गया, तो उसका परिणाम बाढ़ के रूप में भयंकरता दिखाने ही लगेगा।

प्रस्तुत वातावरण में एक ही सबसे बड़ा अनर्थ दीख पड़ता है कि हर कोई अपने उपार्जन, वैभव को मात्र अपने लिए ही खर्च करना चाहता है। वह अपनापन भी विलासिता और अहंकारी ठाट-बाट प्रदर्शन तक ही सीमित है। यह प्रचलन इसी प्रकार बना रहा, तो इसका दुष्परिणाम अब से भी अधिक भयंकर रूप में अगले दिनों दृष्टिगोचर होगा। एक से एक बढ़कर अनर्थ सँजोए जाते रहेंगे। पेट की एक सीमा है, उसे पूरा कर लेने पर भी अनावश्यक आहार खोजते चले जाने पर वह विग्रह उत्पन्न किए बिना रहेगा नहीं। उल्टी दस्त, उदरशूल जैसी अवांछनीय परिस्थितियाँ ही उत्पन्न होंगी। यह मोटी बात समझी जा सके, तो फिर एक ही नीति निर्धारण शेष बच जाता है कि नीतिपूर्वक कमाया कितना ही क्यों न जाए, पर उसका उपयोग सत्प्रवृत्ति के मार्ग में आगे बढ़ने में ही किया जाए।

मात्र पैसा नहीं, शक्ति सूत्रों में समर्थता, योग्यता, शिक्षा, कुशलता आदि अन्य विभूतियाँ भी आती हैं। उन्हें भी अपरिग्रही नीतिवानों की तरह पतन को बँटाने और उत्कर्ष को बढ़ाने में उसी प्रकार नियोजित किया जा सकता है।

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