नई पुस्तकें >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकांत
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
भूमिका
स्त्री एवं पुरुष संसार की अनुपम रचना हैं। दोनों एक दूसरे के पूरक एवं सहभागी हैं। दोनों एक दूसरे की चाहत और जरुरत भी हैं। पीढ़ियों के सृजन कार्य में दोनों का होना अत्यन्त आवश्यक है। प्राचीनकाल से ही भारत में नारी का स्थान गरिमामय रहा है। ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ का अनुकरणीय सिद्धांत हमारे पूर्वजों ने दिया। एक कालखण्ड में गार्गी, विदुला मैत्रेयी, आदि अनेक विदुषियों ने अपनेज्ञान के द्वारा समाज को आलोकित किया।
प्राचीन समय में हमारे देवता भी इतने शक्तिशाली नहीं रहे जितनी हमारी देवियां। धन की देवी-लक्ष्मी जी, विद्या की देवी-सरवस्ती जी, शौर्य की प्रतिमा-दुर्गा जी आदि अलग-अलग क्षेत्रों में शक्ति सम्पन्न रही हैं। माँ वैष्णो ने भैरव का वध किया, राम ने युद्ध के समय आदिशक्ति की आराधना की। युद्ध के समय प्रत्येक योद्धा भवानी की आराधना करता है।
सशक्त नारी ही सशक्त समाज की जननी है। माता बनकर वह सृष्टि का सृजन करती है, बालक की प्रथम गुरु, तथा पुरुष की प्रेरणा भी नारी बनती है इसलिए यदि महिला ही शक्तिशाली नहीं होगी तो राष्ट्र कमजोर रह जाएगा।
महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा कुशलता अभिव्यक्त करने की अधिक क्षमता होती है परन्तु महिलाओं का प्रभाव तब सामने आएगा जब नारी सशक्तिकरण का कार्य अपने घर में, अपने परिवार से आरम्भ करेंगे। सबसे पहले हमें अपने परिवार में, समाज में उनको भरपूर सम्मान देना पडे़गा तभी सम्पूर्ण देश में उनका प्रभाव दिखायी देगा। भारतीय समाज नारी को देवी मानकर उसकी पूजा तो करता है परन्तु अभी तक उसे समानता का दर्जा नहीं देता।
आज भी हम अपने आधे समाज अर्थात् महिलाओं को वर्जनाओं से पूर्ण मुक्ति नहीं दिला पाए हैं इसलिए हमारे राष्ट्र का विकास भी एकांगी रह गया। पर्दा प्रथा, अंधविश्वास, दहेज, कन्याभ्रूण की हत्या, नारी पर अत्याचार आदि, आज भी समाज में अनेको कुरीतियां व्याप्त हैं जिनके फलस्वरूप आज भी उनको दूसरा दर्जा ही मिला है।
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