नई पुस्तकें >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकांत
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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हराम की कमाई
पहले हफ्रता बीता... फिर महीना बीता... तो वह बेचैन हो गया। कोई उसकी भेंट-पूजा चढ़ाने नहीं आया।
क्या साला पहले वाला थानेदार निरा उल्लू का पट्ठा था? सारी रात वह इसी उधेड़बुन में लगा रहा।
सुबह उठते ही उसने पिछले अपराधों की फाइल खोली और दनदनाता हुआ एक सिपाही को लेकर निकल पड़ा।
एक कोठे पर चढ़कर उसने आवाज दी-‘कौन रहता है यहां...?’
द्वार खोलकर एक प्रौढ़ महिला बाहर निकली-‘आईए हुजूर... आज नाचीज को कैसे याद फरमाया?’
‘मुझे रिपोर्ट मिली है यहां वेश्यावृति होती है’ थानेदार गुर्राया।
‘आप... क्या बात करते हो हुजूर... हम तो आप जैसे बड़े लोगों की सेवा करते हैं... लो पान खाइए’ बोलते हुए उसके दोनों होठ गोल हो गए थे। पानदान में पान के साथ एक पचास का नोट भी पड़ा था।
‘एक महीने में केवल पचास...।’ उड़ती नजर नोट पर डालकर वह झुंझला पड़ा-’बुढिया इतनी हराम की कमाई करती है... और हमारे लिए केवल आधा ही नोट...।’
‘हुजूर, एक-एक मर्द की छाती से उतारना होता है... हराम की कमाई वह होती है जो बिना कुछ करे-धरे मिल जाए... लो खा लो पान... बहुत अच्छा है।’ तश्तरी उठाकर उसने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा-’हुजूर पहले थानेदार का तबादला भी इसी चक्कर में हुआ था... वैसे लौंडी हमेशा आपकी सेवा में हाजिर रहेगी।’
थानेदार आंख बदलकर हाथ तश्तरी की ओर बढ़ाते हुए बोला- ‘बाई सचमुच तुम्हारी कमाई है बहुत खून-पसीने की।’
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