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मूछोंवाली

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

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पिंजरे की मैना


किसी के शरीर से जान निकालकर पिंजरे में बंद कर दी जाए तो बाहर कुछ न बचेगा। मीरा का सितार भी संदूक में बंद कर दिया गया।

एक जमाना था उसकी उंगलियां सारा-सारा दिन सितार पर थिरकती रहती थी। कभी-कभी वह संगीत में एक हो जाया करती थी और एक महान कलाकार बनने का सपना संजोया था उसने।

शादी के कुछ दिन बात ही सास ने सितार संदूक में रखवा दिया। संगीत-गुरु को बाहर से विदा कर दिया गया। प्रंशसको के पत्र जला डाले गए, पड़ोसिन से बतियाने पर प्रतिबंध लग गया क्योंकि वह एक इज्जतदार घर की बहू बन गई थी।

कई-कई दिन उसे खुला आकाश दिखाई न देता। वह सूखने लगी।

‘क्या सारी उम्र उसे इन बन्धनों में जीना पड़ेगा... ’नहीं कभी नहीं’- एक दृढ़ निश्चय के साथ, वह संदूक खोलकर सितार के तार कसने लगी।

ड्योढ़ी पर बंधी पिंजरे की मैना यकायक फड़फडा उठी।

 

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