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पंचतंत्र

विष्णु शर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9838

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भारतीय साहित्य की नीति और लोक कथाओं का विश्व में एक विशिष्ट स्थान है। इन लोकनीति कथाओं के स्रोत हैं, संस्कृत साहित्य की अमर कृतियां - पंचतंत्र एवं हितोपदेश।

पत्नी ने कहा, 'तो क्या हुआ तुम मगर हो। मगर तो जीवों को मारते ही हैं।'

मगर जोर-जोर से रोने लगा। उसकी बुद्धि काम नहीं कर रही थी। पर इतना वह जरूर जानता था कि पति को पत्नी की देखभाल करनी चाहिए। उसने तय किया कि वह अपनी पत्नी का जीवन जैसे भी हो बचाएगा। यह सोचकर वह बंदर के पास गया। बंदर मगर का रास्ता देख रहा था।

उसने पूछा, 'क्यों दोस्त आज इतनी देर कैसे हो गई? सब कुशल तो है न?'

मगर ने कहा, 'मेरा और मेरी पत्नी का झगड़ा हो गया है। वह कहती है कि मैं तुम्हारा दोस्त नहीं हूं क्योंकि मैंने तुम्हें अपने घर नहीं बुलाया है। वह तुमसे मिलना चाहती है। उसने कहा है कि मैं तुमको अपने साथ ले जाऊं। अगर नहीं चलोगे तो वह मुझसे फिर झगड़ेगी।'

बंदर से हंस कर कहा, 'बस इतनी सी बात थी। मैं भी भाभी से मिलना चाहता था। पर मैं पानी में कैसे चलूंगा? मैं तो डूब जाउंगा।'

मगर ने कहा, 'उसकी चिंता मत करो। मैं तुमको अपनी पीठ पर बैठाकर ले जाऊंगा।' बंदर राजी हो गया। वह पेड़ से उतरा और उछलकर मगर की पीठ पर सवार हो गया।

नदी के बीच में पहुंचकर मगर आगे जाने की बजाए पानी में डुबकी लगाने को था कि बंदर डर गया और बोला, 'क्या कर रहे हो भाई? डुबकी लगाई तो मैं डूब जाउंगा।'

मगर ने कहा, 'मैं तो डुबकी लगाउंगा। मैं तुमको मारने ही तो लाया हूं।'

यह सुनकर बंदर संकट में पड़ गया। उसने कहा, 'क्यों भाई मुझे क्यों मारना चाहते हो? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?'

मगर ने कहा, 'मेरी पत्नी बीमार है। वैद्य ने उसका एक ही इलाज बताया है। यदि उसको बंदर का कलेजा मिल जाए तो वह बच जाएगी। यहां और कोई बंदर नहीं है। मैं तुम्हारा कलेजा ही अपनी पत्नी को खिलाउंगा।' पहले तो बंदर भौचक्का रह गया। फिर उसने सोचा केवल चालाकी से अपनी जान बचाई जा सकती है।

उसने कहा, 'मेरे दोस्त यह बात तुमने पहले क्यों नहीं बताई। मै तो भाभी को बचाने के लिए अपना कलेजा खुशी-खुशी दे देता। लेकिन वह तो वहीं किनारे पेड़ पर टंगा है। मैं उसे हिफाजत के लिए वहीं रखता हूं। तुमने पहले ही बता दिया होता तो मैं उसे साथ ले आता।'

'यह बात है।' मगर बोला।

'हां, जल्दी वापस चलो। कहीं तुम्हारी पत्नी की बीमारी बढ़ न जाए।'

मगर वापस पेड़ की ऒर तैरने लगा और बड़ी तेजी से वहां पहुंच गया। किनारे पहुंचते ही बंदर छलांग मारकर पेड़ पर चढ़ गया। उसने हंसकर मगर से कहा, 'जाऒ मूर्खराज अपने घर लौट जाऒ। अपनी दुष्ट पत्नी से कहना कि तुम दुनिया के सबसे बड़े मूर्ख हो। भला कोई अपना कलेजा निकालकर अलग रख सकता है।'

सीखः दोस्तों के साथ कभी भी धोखेबाजी नहीं करनी चाहिए और संकट के समय अगर धैर्य के साथ सोचा जाए तो बड़ी से बड़ी मुश्किल भी दूर हो सकती है।

 

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