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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

उसकी याद कैसे कोई भूल जाय

‘वही’ यहाँ तलैया के पास रहा करती थी–इसी तलैया के पास जिसकी सीढ़ियाँ भग्नावशेष में जाती दीख पड़ती हैं। संध्या समय कितनी ही बार उसने उस चँदा को देखा है जिसे कितनी ही बार केवल बाँस की पत्तियाँ के कम्पन से ही चक्कर आ गये थे। वर्षा के बहुत-से ऐसे दिन भी आये जब भीगी धरती की सुगन्ध उसके समीप से निकलकर चावलों की नवीन टहनियों पर छा गई थी।

उसका ‘प्यार का नाम’ यहाँ उन सब लड़कियों को ज्ञात है जो यहाँ खजूर के झुंडों और उनके सामने बिछे हुए बड़े-बड़े मैदानों में बैठकर बातें करतीं और सरदी के लिए अपनी रजाईयों में रूई भर कर टाँके लगाती थीं।

अपने छोटे-छोटे पैरों से वह इसी तलैया में तैरा करती थी और उन्हीं पैरों की याद यह पानी अपनी गहराई में छिपाये हुए है। वह नित्यप्रति इस तलैया में नहाने आया करती थी और जब भीगे पैरों से गाँव की ओर लौटा करती थी तब उसके पैरों के निशान गाँव की पगडंडी पर उसकी अमर याद बनकर रह जाते थे।

उसकी स्मृति भला कैसे मिट जाएगी। क्योंकि आज जितनी भी स्त्रियाँ उस तलैया पर पानी भरने के लिए आती हैं–उन सभी ने उसे सादा-सी हँसी बाघों पर भी मुसकुराते देखा है। उसे कौन भूल जाएगा। क्योंकि उसके दरवाजे पर, वह बूढ़ा किसान भी जो अपने बैलों को उस तलैया में नहलाने ले जाता था, नित्यप्रति रूकता था और उसे नमस्ते करता था।

कितनी ही नौकाएँ इस गाँव के समीप से निकल जाती हैं, कितने ही यात्री उस वट-वृक्ष के नीचे विश्राम करते हैं, कितने ही दर्शकों के झुँड उस सामने वाले किले को पार कर बाज़ार चले जाते हैं पर कभी भी वे गाँव की सड़क के समीप स्थित इस स्थान की ओर नहीं देखते। वे क्यों नहीं देखते इस स्थान को, जो तलैया के समीप ही उसकी सीढ़ियों के भग्नावशेष में बना हुआ है?

क्या वे ईर्ष्या-वश उस स्थान को नहीं देखते? क्या इसलिए नहीं देखते कि वह यहाँ रहा करती थी और मैं उसे प्यार करता था?

* * *

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