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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

प्रणय! तुम्हारी हँसी तुम्हारी आन्तरिक व्यथा की अभिव्यक्ति है

मेरे अनुराग! मेरे प्रेम! मुझे तो ऐसा जान पड़ता है मानो जीवन-उषा के उदय होने से पूर्व ही तुम किन्हीं आनन्दयुक्त सपनों के निर्झर में खड़े थे और अपने रक्त में उसके वेग का अनुभव कर रहे थे।

अथवा–कभी-कभी मैं यह भी सोचने लगता हूँ कि तुम्हारा मार्ग ईश्वरीय उद्यानों के मध्य से निकलता होगा–जहाँ चमेली, कमलिन और गेंदा के पुष्प ढेरों की संख्या में प्रफुल्लित होकर तुम्हारी गोद में गिर जाते होंगे और तुम्हारे हृदय में प्रवेश पाते ही अशान्त हो जाते होंगे।

क्या तुम्हें मालूम है, मेरे प्रेम! तुम्हारी हँसी स्वयं एक गीत है जिसके शब्द तरंगों की चीत्कार में विलीन हो जाते हैं? क्या अन्जान पुष्पों की सुगन्ध तुम्हारे मनोविनोद से भिन्न है, प्रेम? छिपने को दौड़ाती है तो तुम्हारी मुस्कान चन्द्र-ज्योत्स्ना के समान तुम्हारे मृदुल अधरों की खड़की पर अपने को बिखेर देती है? मैं तो अकारण ही तुमसे पूछ बैठता हूँ क्योंकि कारण को मैं स्वयं नहीं जानता। बस मैं तो केवल इतना जानता हूँ कि–तुम्हारी हँसी तुम्हारी आन्तरिक वेदना की उथल-पुथल है, तुम्हारे जीवन का आन्तरिक वेग है।

* * *

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