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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

बताओ! ऐसे पाना चाहती हो अपने भाग्य-देवता को

अपने घूँघट-आंचल को किंचित् हटाकर तथा अधखुली खिड़की पर खड़ी होकर तुम किस चूड़ी बेचने वाले की प्रतीक्षा कर रही हो? जिस सड़क पर धूल उड़ती है उस पर काठ की भारी-भारी गाड़ियों को रेंगते तुम देख रही हो अथवा दूर–नदिया की तरंगों पर तैर रही नावों को देख रही हो–जिनके मस्तूल क्षितिज को छूते प्रतीत हो रहे हैं?

तुम्हारे लिए तो संसार उस बूढ़ी स्त्री के समान होगा जो चरखे पर बैठी सूत कात रही है और कातते-कातते न जाने क्या-क्या गुनगुना रही है। उसकी गुनगुनाहट में अनर्थक लय है–जो एकाएक अनन्त विचारों की छायाओं से भर जाती है।

पर कौन जानता है कि वह अनोखा चूड़ीवाला अपनी रंग-बिरंगी चूड़ियों को बगल में दबाये ऐसी दोपहरी में, इस मार्ग से निकलेगा भी या नहीं? हाँ! वह तुम्हारे द्वारे पर एक आवाज देगा और तुम खट से अपनी खिड़की खोल दोगी, घूँघट उतार फेंकोगी और अपने धुंधले सपनों से निकलकर अपने भाग्य-देवता को पा लोगी।

* * *

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