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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

अंधकार ही पसंद है तो अंधकार में बैठकर ही मेरा गीत सुनो

दैवयोग से यदि मेरे संबंध में कुछ सोचो, तो अनुभव करोगी कि कभी न कभी तो तुम्हारे लिए गीत गाऊँगा ही–पर उस समय जब बरसाती संध्या की छाया नदिया की चादर पर आकर बैठ जायेगी और सूर्य अपने धुंधले प्रकाश को पीछे छोड़ देगा। मैं तुम्हें उस समय गीत सुनाऊँगा जब काम करने अथवा खेलने के लिए दिन लगभग समाप्त हो चुकेगा।

दक्षिण वाली अट्टालिका में जब तुम अकेली ही बैठी होगी तब मैं स्वयं को अंधकारमय कमरे में रखकर तुम्हें गीत सुनाऊँगा। किन्तु जैसे जैसे अंधियारी बढ़ती जायेगी वैसे-ही-वैसे भीगी पत्तियों की सुंगध खिड़की द्वारा तुम्हारे पास चली आयेगी। तभी नारियल वृक्षों के झुँड भी तूफानी हवाओं के चलने पर चीत्कार करने लगेंगे और तब उनका दुःखमय रुदन भी तुम सुन सकोगी।

पर जैसे ही कोई प्रदीप्त दीपक तुम्हारे कमरे में आया नहीं कि मैं यहाँ से चला जाऊँगा और तब तुम एकाकी रहकर सूने कमरे में रात्रि से बातें करना और मेरे शान्त होने पर मेरे गीत सुनना।

* * *

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