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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

मैं चाहता हूँ–मैं अकेला ही रहूँ। कोई रहने ही नहीं देता

एक बार नटखट बसन्त अपनी मतवाली हँसी को लेकर मेरे जीवन में आया। मेरे जीवन में पदार्पण करते ही उसने जीवन के सूखे गुलाब-पुष्पों को प्रफुल्लित बना दिया और साथ ही, नवीन अशोक की पत्तियों को अपने लाल चुम्बनों से ऐसा रंगा कि समस्त आकाश जलता हुआ दीख पड़ने लगा।

वही बसन्त मेरे एकाकी जीवन में किसी निर्जन गली से घुस आया है। अपनी गहन शान्ति की विचारवान छाया को लेकर वही मेरी मुंडेर पर आ बैठा है और वही बैठा हुआ कहीं दूर खेतों के पार झाँक रहा है–जहाँ पर पृथ्वी की हरियाली आकाश-देव की पीत काया को देखकर पहले तो अशक्त बन गई और फिर चेतनाहीन हो गई।

* * *

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