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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

सच्चा प्रेमिल-हृदय रखने वाली प्रेमिका स्वप्न को नहीं भेजती

पिछली ही रात्रि की तो बात है। बादल बुरी तरह गरज रहे थे और ‘अमालक की शाखायें’ तूफानी हवाओं के पंजे में रहकर भी अपने जीवन के लिए युद्ध कर रही थीं।

उसी समय मेरे मन में एक बात आई और वह यह–यदि स्वप्नों को ही मेरे पास आना है तो वे साक्षात् मेरी प्रेमिका के रूप में ही मेरे समीप आयें। मुझे विश्वास है, यद्यपि रात्रि निर्जन है और वर्षा घमासान है पर फिर भी स्वप्न, स्वप्न के रूप में नहीं वरन् साक्षात् प्रेमिका के रूप में ही आवेंगे।

संसार की पवन कराह रही है। आसुओं से दूषित होकर उषा के गाल पोले पड़ गये हैं चूँकि सत्य अप्राप्य है। मुझे ऐसा लगा है कि मेरे स्वप्न भी सत्यहीन एवं नीरस हैं। उन्हें अतीत की वस्तु बन जाने में कितनी देर लगती है।

गत रात्रि को जब काली अंधियारी ने बेगवती पवन की मदिरा पी रखी थी, तब निशा के अवगुंठन के समान वर्षावली को हवाओं ने चिथड़े-चिथड़े करके फेंक दिया। क्यों तुम नहीं विश्वास करते कि नक्षत्रहीन रात्रि में भी भयंकर वर्षा का रौद्र रूप देखने को मिल सकता है?

क्या सत्य मुझसे ईर्ष्या करेगा–और उस समय–जब असत्य नक्षत्रहीन रात्रि में–गरजते हुए मेघों के साथ–मेरी प्रेमिका के रूप में मेरे समीप आ जाये?

* * *

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