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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

स्वतंत्रता के लिए आत्म-विनाश भी सहर्ष स्वीकार करो।

देखो मेरी नौका! तुमने कितनी ही बार पतवार को तोड़ा और अब तुमने अपनी पाल को भी तोड़ दिया। तुम कभी इस बात की चिन्ता ही नहीं करती कि–आगे न जाने क्या हो जाए और तत्काल बीच सागर की ओर चल देती हो। तुम्हें तो ध्यान रहता ही नहीं, और तुम्हारे साथ तुम्हें रोकने वाला लंगर भी घिसटता चला जाता है। परन्तु अब तुम्हारे इस काष्ठ-शरीर में छिद्र बढ़ गया है और तुम अपनी यात्रा समाप्त कर निद्रा की गोद में सो जाओ और किनारे के पानी को शोर मचाने दो।

दुःख की बात है!–मैं जान गया हूँ कि तुम्हें चेतावनी देना व्यर्थ है। अवगुण्ठन में छिपी काली मृत्यु से तुम तो बहुत जल्दी आकर्षित हो जाती हो। तुम्हें नहीं मालूम कि तूफानी हवाओं का पागलपन और सागर की आक्रांत लहरें-दोनों ही तुम्हारे ऊपर सवार हैं। ज्वार का संगीत ऊँचे से ऊँचा आलाप ले रहा है। जीवन के भयंकर नृत्य से तुम्हें ज्वर आ गया है। अतः तुम कंपित हो।

जब तुम में इतना साहस है कि कठिनतम् जीवन से टक्कर ले सकती हो तो मैं कहूँगा–मेरी जीवन नौका! तुम अपनी परतन्त्रता रूपी श्रृंखला को तोड़ दो और स्वतन्त्र बन जाओ तथा भयहीन होकर अपने विनाश को भी आत्मोत्सर्ग के रूप में सहर्ष स्वीकार कर लो।

* * *

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