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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

मुझे पाने के लिए तुम्हें अपने को छोड़ना होगा

मेरे यौवन के गत जीवन से एक संदेश आया था जिसका आशाय इस प्रकार था–मैं मई मास के उस कम्पन में तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूँ जहाँ पर मुस्कानें आँसुओं के लिए उद्वेलित हैं और जहाँ पर समय उन गीतों को पाकर तड़पता है जो अभी तक गाये नहीं गये हैं।’’

वह संदेश बराबर यही कहता चला जा रहा है–‘‘समय और वृद्धावस्था के बीहड़ पथ को पार कर मृत्यु के द्वार से निकलो और मेरे समीप आओ। मैं क्यों तुम्हें अपने पास बुलाता हूँ–क्या तुम जानते हो?–इसलिए कि स्वप्न मुर्झा जाते हैं आशायें निराश हो जाती हैं और परिश्रम से इकट्ठा हुआ धन सूखे हुए फल के समान लुप्त हो जाता है।

देखो! मुझी में तुम शाश्वत् सत्य के दर्शन करो। मैं ही वह अन्नत सत्य हूँ जिसे अपनी जीवन-यात्रा में तुम्हें बार-बार पाना होगा।

मुझसे मिलने के लिए और मेरे दर्शनों के लिए तुम्हें अपने जीवन-तट को छोड़कर आना होगा–बार बार आना होगा समझे!

* * *

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