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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

मेरे चरणों की पुजारिन कितनी अच्छी है

राह मेरी विवाहित जीवन-संगिनी है। उषा से लेकर संध्या तक वही मेरी जीवन-साथी है और मेरे चरणों में बैठी हुई मुझसे बातें करती है। वही सारी रात्रि मेरे स्वप्नों के लिए गीत गाती रहती थी।

क्या मैं तुम्हें बता दूँ कि मैंने उसे कैसे पाया?

वस्तुतः उसके और मेरे मिलन का कोई आदि नहीं है। वह तो अनन्तरूप से नित्यप्रति ही उषा की बेला में मुझसे मिलती है और तत्पश्चात् नवीन पुष्पों और नवीन गीतों से अपने ग्रीष्म को सजाती है।

उसका प्रत्येक नवीन चुम्बन मेरे लिए प्रथम चुम्बन है। मेरी राह और मैं स्वयं दोनों ही प्रेमी हैं। उसे प्रसन्न करने के लिए मैं अपने वस्त्र नित्य ही रात्रि को बदल लेता हूँ। नवीन वस्त्र पहनकर दिवस होने से पूर्व ही मैं पुराने वस्त्रों को सड़क के किनारे स्थित किसी धर्मशाला में निश्चिंत छोड़ देता हूँ।

* * *

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