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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

माया रूपी सौन्दर्य! कितने बड़े हो पर छोटे होकर रहते हो, ऐं!

मेरे जीवन में ‘सन्ध्या’ सदैव नीरव एवं जनहीन रही है। ऐसे ही एक दिन संध्या समय मैं एक पुस्तक पढ़ रहा था और पढ़ते-पढ़ते जब मेरा हृदय अतृप्त हो उठा तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो सौन्दर्य एक वस्तु है जिसे व्यापारियों ने शब्दों में गढ़कर रख दिया है। अन्ततः थककर मैंने पुस्तक को बन्द कर दिया और मोमबत्ती के धुंधले फूल को झाड़ दिया। तब एक क्षण पश्चात् ही मैंने अनुभव किया मानो सारे कमरे में चन्द्र ज्योत्सना की बाढ़-सी आ गई।

हे माया रूपी सौन्दर्य! भला तुम किस प्रकार एक बत्ती की छोटी-सी लौ के पीछे छिपे रहते हो? और फिर, क्या बता सकते हो–ऐसे छोटे से अस्तित्व को लेकर तुम किस प्रकार समस्त आकाश को अपने सौन्दर्यपूर्ण तेज से आच्छादित कर देते हो?

न जाने किस कुहा की भाँति कुछ अकिंचन शब्द एक पुस्तक से निकलते हैं और उस रूपेली को अवगुण्ठित कर देते हैं, जिसके कंठ ने समस्त पृथ्वी के हृदय को अव्यक्त शान्तिदेकर चुप कर दिया है।

* * *

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