लोगों की राय

नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार

प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839

Like this Hindi book 0

रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

मुख न मोड़ो मेरे नाथ! अब तो स्वीकार कर ही लो

मुझे स्वीकार कर लो, मेरे स्वामी! इस क्षण तो स्वीकार कर ही लो।

जो दिन यतीम बालक की भाँति मैंने व्यतीत किये हैं, उन्हें भूलने की मेरी इच्छा है।

इस छोटे से क्षण को अपनी गोदी में फैला लो और प्रदीप्त होकर इसे अपने हाथ से पकड़े रहो।

मैं घुमक्कड़ बनकर उन पुकारों को खोजता रहता हूँ जो बरबस मुझे अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं। पर वे तो सदैव कहीं–अनजाने में ले जाकर मुझे पटक देती हैं। अब तो मुझे आशा दे ही दो।–क्यों?– कि मैं शान्त होकर बैठ जाऊँ और अपनी शान्ति की आत्मा मैं तुम्हारे कहने को सुनूँ।

मेरे हृदय की कालिमा में जो रहस्य छिपे हैं, उनसे मुख न मोड़ो, मेरे नाथ! और यदि हो सके तो अपनी ज्वाला से उन्हें उस समय तक जलाते रहो जब तक कि वे स्वयं जलकर प्रकाशित न हो जायें।

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book