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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

आँख मिचौनी अब अधिक न चले तो अच्छा है

अपने को तुमसे छिपाने के लिए ही मैंने अपने को छिपा लिया था। मैं वास्तव में तुम्हें टालना चाहता था।

किन्तु अब तो मैं पकड़ा गया, अतः तुम मुझे दंड दो और देखो कि...तब क्या वास्तव में तुमसे मेरा सम्बंध टूट जायेगा।

मेरी इच्छा है कि आँख मिचौनी के इस खेल को अब तुम सदैव के लिये बन्द कर दो।

मैं तुमसे कहे देता हूँ...‘यदि अन्ततः जीत तुम्हारे ही भाग्य में है तो तुम, मेरा, मुझसे सब कुछ छीन लेना।’

मेरी हँसी और मेरे गीत..दोनों ही मार्ग के किनारे पर खड़ी हुई झोपड़ी और महलों में रहते हैं। पर अब क्योंकि तुम मेरे जीवन में आ गये हो..मुझे रुला कर देखो और फिर देखो कि तुम्हारे ऐसे करने से मेरी हृदयतन्त्री टूट भी सकेगी अथवा नहीं।

* * *

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