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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

चाहो तो स्वतंत्रता  की रज्जु से बाँध लो पर परतंत्रता की से नहीं

अधिक समय व्यतीत हो जाने पर भी, जब कोई भी अतिथि मेरे घर नहीं आया तो मेरे घर के द्वार में ताला लग गया और मेरी खिड़कियाँ बंद हो गईं। मैंने सोचा कि क्या मेरी रात सूनी ही बीतेगी?

अपने नेत्रों को खोलने पर मैंने देखा कि समस्त अंधकार दृष्टिगोचर हो गया है।

मैं एकाएक उठ बैठा, दौड़ा और देखा कि मेरे ही घर के कुंडे टूटे पड़े हैं।...और द्वारों को तोड़कर वायु और प्रकाश दोनों ही कमरे में पताकाओं के समान उड़े चले आ रहे हैं।

अपने ही घर में मुझे बन्दी बना दिया गया और जब मेरे ही घर को मेरे लिये बन्दीगृह बनाकर उसका द्वार बन्द कर दिया गया, तब दुःखित होकर मेरा हृदय उस कारावास से और उसके वातावरण से बचकर निकलने के लिये योजनायें बनाने लगा।

अब  अपने ही टूटे द्वार पर मैं शान्त बैठा हूँ, और तुम्हारे आने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ...और देखो, इसलिए कि स्वतंत्रा की रज्जू से तुम मुझे बाँधे रहोगे।

* * *

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