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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

मुझे मुक्त कर दो, बस मेरा यही नारा है

जिस प्रकार वनों में चिड़ियायें स्वतन्त्र रूप से विचरण कर रही हैं और जिस प्रकार पथिक लक्ष्यहीन होकर अदृश्य पथों पर भटक रहे हैं उसी प्रकार मैं भी विचरण करना चाहता हूँ। अतः तुम मुझे मुक्त कर दो।

मुक्त होकर–जैसे वर्षा का प्रवाह अपने बाँध को तोड़कर और तूफान अपने को बन्दी बनाने वाले तालों की आधार-शिला को हिलाकर अपने अज्ञात लक्ष्य की ओर दौड़ते हैं, उसी प्रकार निर्द्वन्द होकर अपने लक्ष्य को पाने की कामना मुझे भी है। अतः तुम मुझे मुक्त कर दो।

तुम्हें ज्ञात हो कि मैं ऐसे ही मुक्त होना चाहता हूँ जैसे वन का दावानल स्वन्त्र होकर गरजता है, जोरों से हँसता है और फिर ललकार-ललकार कर अन्धकारमय पराधीनता का प्रतिकार करता है।

* * *

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