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रश्मिरथी

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9840

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रश्मिरथी का अर्थ होता है वह व्यक्ति, जिसका रथ रश्मि अर्थात सूर्य की किरणों का हो। इस काव्य में रश्मिरथी नाम कर्ण का है क्योंकि उसका चरित्र सूर्य के समान प्रकाशमान है

 

3


पर, नहीं, विश्व का अहित नहीं
होता क्या ऐसा कहने से?
प्रतिकार अनय का हो सकता।
क्या उसे मौन हो सहने से?

क्या वही धर्म, लौ जिसकी
दो-एक मनों में जलती है।
या वह भी जो भावना सभी
के भीतर छिपी मचलती है।

सबकी पीड़ा के साथ व्यथा
अपने मन की जो जोड़ सके,
मुड़ सके जहाँ तक समय, उसे
निर्दिष्ट दिशा में मोड़ सके।

युगपुरुष वही सारे समाज का
विहित धर्मगुरु होता है,
सबके मन का जो अन्धकार
अपने प्रकाश से धोता है।

द्वापर की कथा बड़ी दारुण,
लेकिन, कलि ने क्या दान दिया?
नर के वध की प्रक्रिया बढ़ी
कुछ और उसे आसान किया।

पर, हाँ, जो युद्ध स्वर्गमुख था,
वह आज निन्द्य-सा लगता है।
बस, इसी मन्दता के विकास का
भाव मनुज में जगता है।

धीमी कितनी गति है? विकास
कितना अदृश्य हो चलता है?
इस महावृक्ष में एक पत्र
सदियों के बाद निकलता है।
 

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