नई पुस्तकें >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
दो
सन् 1884 में असाधारण वक्ता और नवविधान ब्राह्मणों ने नेता ब्रह्मानंद केशवचंद्र सेन नहीं रहे। रामकृष्ण परमहंस अपनी साधना भक्ति के लिए पूरे कलकत्ता में मशहूर थे। रामकृष्णदेव के प्रधान शिष्य स्वामी विवेकानंद में एक नाता बना हुआ था। उनसे भी गहरा नाता भगिनी निवेदिता के साथ था। उन्हीं दिनों शशघर तर्कचूड़ामणि जैसे कई प्रमुख पंडित हिंदू धर्म विज्ञान पर आधारित हैं, इसे साबित
करने के लिए आम जनता के सामने अजब-गजब जानकारियां पेश कर रहे थे। वे लोग छींक और छिपकली गिरने की भी वैज्ञानिक व्याख्या कर रहे थे। ऐसे लोगों का मजाक उड़ाते हुए रवीन्द्रनाथ ने ''हिं टिं छट'' नामक कविता लिखी।
उन्हीं दिनों बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय से रवीन्द्रनाथ की विचारों की लड़ाई चल रही थी। रवीन्द्रनाथ उस वक्त आदि ब्रह्मसमाज के सभापति भी थे। बंकिमचंद्र का भी कोई कम प्रभाव नहीं था। चंद्रनाथ बसु आदि प्रमुख लेखकों को लेकर बंकिम बाबू ब्राह्म समाज का विरोध करने और हिन्दू धर्म को नई पहचान देने के काम में जुट गए। ऐसे समय पत्र-पत्रिकाओं में रवीन्द्रनाथ से बंकिमबाबू का जबर्दस्त विवाद छिड़ गया। मगर बंकिम बाबू रवीन्द्रनाथ की प्रतिभा को मानते थे। रमेशचंद्र दत्त की बेटी के विवाह के समय उन्होंने अपने गले की माला रवीन्द्रनाथ को पहनाकर ''संध्यासंगीत'' के कवि का स्वागत किया था। बंकिमचंद्र से कवि का प्रेम जीवन के अंत तक बना रहा। दोनों के बीच विचारों की यह लड़ाई कुछ समय तक ही रही थी।
इधर जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी के कई बालक बड़े होकर रवीन्द्रनाथ के साथी हो गए, जैसे कि बलेन्द्रनाथ, सुधीन्द्रनाथ, हितेन्द्रनाथ तथा अवनीन्द्र, सुमरेन्द्र और गगनेन्द्र-ये तीनों भाई थे। उन्हीं दिनों उनकी मंझली भाभी, सत्येन्द्रनाथ ठाकुर की पत्नी, ज्ञानदानंदिनी देवी ने ''बालक'' नाम की एक पत्रिका ठाकुरबाड़ी से निकालना शुरू किया। बच्चों की इस पत्रिका में रवीन्द्रनाथ कहानी, कविता, नाटक, हास्य-कौतुक आदि नियमित रूप से लिखने लगे। उनकी 'शिशु' नामक कविता की किताब की शुरू की कुछ कविताएं उन्हीं दिनों लिखी गयी थीं। इसके अलावा उन्होंने ''राजर्षि'' और ''मुकुट'' भी लिखा। लेखक के रूप में रवीन्द्रनाथ मशहूर होने लगे थे। ''कड़ि ओ कोमल'' (कोड़ी और कोयल) तथा ''मानसी'' के बाद ''सोनार तरी'' (सोने की नाव) ''चित्रा'', ''कल्पना'' आदि कविता पुस्तकों से उन्होंने कवि के रूप में अपनी पहचान बना ली। इसके अलावा ''मायार खेला'' (माया का खेल), ''विसर्जन'', ''चिर कुमार सभा'' आदि कई प्रकार के नाटक और उनके लेख लगातार छपने लगे।
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