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आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9843

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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है


संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

समय संपदा का सदुपयोग


मनुष्य के पास ईश्वर प्रदत्त पूँजी है - समय। समय संसार की सबसे मूल्यवान संपदा है। यह वह मूल्यवान संपत्ति है, जिसकी कीमत पर संसार की कोई भी सफलता प्राप्त की जा सकती है। समय का सदुपयोग करने वाले व्यक्ति कभी भी असफल नहीं हो सकते। कहते हैं कि परिश्रम से ही सफलता मिलती है, किंतु परिश्रम का अर्थ भी समय का सदुपयोग ही है।

मनुष्य कितना ही परिश्रमी क्यों न हो, अपने परिश्रम के साथ समय का सामंजस्य नहीं करेगा तो निश्चय ही उसका श्रम या तो निष्फल चला जाएगा अथवा अपेक्षित फल न दिला सकेगा। किसान परिश्रमी है, किंतु यदि वह अपने श्रम को समय पर काम में नहीं लाता तो वह अपने परिश्रम का पूरा लाभ नहीं उठा सकता। असमय बोया हुआ बीज बेकार चला जाता है। असमय जोता खेत अपनी उर्वरता प्रकट नहीं कर पाता। असमय काटी फसल नष्ट हो जाती है। निश्चित समय पर न किया हुआ कितना भी परिश्रम काम में सफलता नहीं देता।

प्रकृति का प्रत्येक कार्य एक निश्चित समय पर नियमित होता है। समय पर ग्रीष्म, समय पर वर्षा, समय पर सरदी और समय पर ही वसंत आकर वनस्पतियों को फूलों से सजा देता है। प्रकृति के इस क्रम में जरा-सा भी व्यवधान पड़ जाने से न जाने कितनी परेशानियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। समय-पालन ईश्वरीय नियमों में सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रमुख नियम है।

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