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आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9843

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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है


( 9 ) पड़ोसियों के प्रति सदा प्रेम और शिष्टाचार का व्यवहार रखिए। जरूरत पड़ने पर उनकी सब प्रकार से सहायता करने को प्रस्तुत रहें और यदि वह गरीब हो तो उसके सामने अपने वैभव का प्रदर्शन करके उसे लज्जित करने का प्रयास न करें। इसी प्रकार धनवान पड़ोसियों के सामने अपनी विपत्तियों का रोना रोकर उसकी सहानुभूति प्राप्त करने का तरीका भी ठीक नहीं है। पड़ोसी से यथासंभव समानता का ही व्यवहार करना चाहिए और उनकी जो कुछ सहायता की जाए वह निःस्वार्थ भाव से और कर्त्तव्य समझकर की जानी चाहिए।

( 10 ) यदि कभी किसी रोगी के पास जाएँ तो उससे कभी उसके रोग को बढ़ा-चढ़ाकर बताने की चेष्टा न करें और न उसके सामने किसी प्रकार की निराशापूर्ण बातें करें। रोगी के पास सदा प्रसन्न मुद्रा में ही जाना चाहिए और रोगी का हौंसला बढ़ाना चाहिए।

( 11 ) रास्ते में जोर-जोर से बुलाना ठीक नहीं। किसी जगह ठहरकर बहुत जोर से बातचीत, हँसी-मजाक, ठहाका मारकर हँसना भी ठीक नहीं।

( 12 ) रास्ते में अनजान स्त्री के पीछे इस प्रकार नहीं चलना चाहिए कि उसे संकोच हो। किसी भी स्त्री को बार-बार गरदन घुमाकर नहीं देखना चाहिए इसी प्रकार मकानों में बैठी या छज्जों पर खड़ी स्त्रियों को ताकना और घूरना अशिष्टता का चिह्न है।

( 13 ) मुसाफिर खाना, धर्मशाला, पार्क आदि सार्वजनिक स्थानों की सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अपना काम पूरा हो जाने के बाद उन्हें गंदा छोड़ जाना अशिष्टता है।

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