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शुक्रवार व्रत कथा

गोपाल शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :18
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9846

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इस व्रत को करने वाला कथा कहते व सुनते समय हाथ में गुड़ व भुने चने रखे, सुनने वाला सन्तोषी माता की जय - सन्तोषी माता की जय बोलता जाये


मां बोली- “अब भूल मत करना।”

वह कहती है- “अब भूल नहीं होगी, अब बतलाओ वे कैसे आवेंगे?”

मां बोली- “जा पुत्री तेरा पति तुझे रास्ते में आता मिलेगा।”

वह निकली, राह में पति आता मिला। वह पूछती है- “तुम कहां गए थे? वह कहने लगा- इतना धन जो कमाया है उसका टैक्स राजा ने मांगा था, वह भरने गया था।”

वह प्रसन्न हो बोली- “भला हुआ, अब घर को चलो।”

घर गए, कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार आया। वह बोली- “मुझे फिर माता का उद्यापन करना है।”

पति ने कहा- “करो।”

बहू फिर जेठ के लड़कों को भोजन को कहने गई। जेठानी ने एक दो बातंह सुनाई और सब लड़कों को सिखाने लगी। तुम सब लोग पहले ही खटाई मांगना। लड़के भोजन से पहले कहने लगे- “हमे खीर नहीं खानी, हमारा जी बिगड़ता है, कुछ खटाई खाने को दो।”

वह बोली- “खटाई किसी को नहीं मिलेगी, आना हो तो आओ।”

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