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अमाँ  : अव्य० [हिं० ए+अ० मियाँ] एमियाँ। (संबोधन, मुसलमान)
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अमा  : स्त्री० [सं० √मा (मान)+का, न० त०] १. अमावस्या। २. चंद्रमा की सोलहवीं कला। ३. घर। मकान। ४. मर्त्य-लोक। स्त्री० [?] चौपायों की आँख में होनेवाली बतौरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमाघौत  : पुं० [?] एक प्रकार का धान।
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अमातना  : पुं० [सं० आमंत्रण] १. आमंत्रित करना। बुलाना। २. निमंत्रण या न्योता देना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमातृक  : वि० [सं० न० ब० कप्] जिसकी माँ न हो। बिना माँ का।
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अमात्य  : पुं० [सं० अमा+त्यक्] १. राजा का सहचर। २. हिन्दू राज्य तंत्र में राजा को परामर्श देनेवाला मंत्री।
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अमात्र  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसकी कोई मात्रा न हो। २. सीमा-रहित। निस्सीम।
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अमान  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसका मान निश्चित या नियत न हो। २. जिसका मान न हुआ हो। अप्रतिष्ठित। ३. जिसे मान न हो। पुं० [न० त०] मान का अभाव। वि० [हिं० अ+मानना] न माननेवाला। पुं० [अ०] १. बचाव। रक्षा। मुहावरा—अमान माँगना=जीवन आदि की रक्षा के लिए दीनतापूर्वक प्रार्थना करना। २. शरण। पुं०=ईमान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमानत  : स्त्री० [अ०] १. कुछ समय या निश्चित अवधि के लिए अपनी वस्तु किसी दूसरे के पास रखना। २. उक्त प्रकार से रखी हुई चीज। उपनिधि। ३. अमीन का कार्य या पद।
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अमानत-खाता  : पुं० [अ०+हिं० ] पंजी, बही आदि में वह खाता या विभाग जिसमें अमानत की रकमें जमा की जाती हों।
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अमानत-खाना  : पुं० [अ०+फा०] वह स्थान जहाँ चीजें अमानत में रखी जाएँ।
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अमानत-नामा  : पुं० [अ० अमानत+फा० नामा] किसी के पास कुछ अमानत रखने के समय उसेक प्रमाण स्वरूप लिखा जानेवाला पत्र।
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अमानतदार  : पुं० [अ०+फा०] जिसके पास कोई चीज धरोहर रखी जाती हो या रखी जाए।
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अमाना  : अ० [सं० आ-पूरा पूरा+मान-माप] १. किसी चीज के अंदर पूरा-पूरा समाना। अँटना। २. अभिमान से युक्त होना। इतराना। फूलना। स० किसी चीज के अंदर पूरी तरह से भरना। अँटाना। पुं० [सं० अयन ?] अन्न रकने की कोठरी या द्वार। बखार का मुँह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमानित  : भू० कृ० [सं०√मन् (मानना)+णिच्+क्त, न० त०] १. जिसका मान या सम्मान न हुआ हो। २. माना न गया हुआ।
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अमानिता  : स्त्री० [सं०√मन्+णिनि, न० त० अमानित्+तल्-टाप्] मान या अभिमान का अभाव, अर्थात् नम्रता। स्त्री०=अमान्यता।
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अमानिया  : पुं० [देश०] एक प्रकार का पटसन।
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अमानी (निन्)  : वि० [सं०√मन् (जानना)+णिनि, न० त०] १. मान या अभिमान न करनेवाला। २. न माननेवाला। स्त्री० [सं० आत्मीय] १. भूमि, जिसका प्रबंध ठेके पर न देकर स्वयं किया जाए। २. भूमि, जो शासन के अधिकार में चली गयी हो। स्त्री० [हिं० अ+मान] १. मनमानी कारवाई। २. देन, लगान आदि में होनेवाली ऐसी छूट जो केवल अंदाज से या कूत के आधार पर की जाए। ३. मजदूरों के काम करने का वह ढंग जिसमें केवल दैनिक मजदूरी मिलती है, काम का मान कोई निश्चित नहीं होता।
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अमानुष  : पुं० [सं० न० त०] वह जो मनुष्य न हो, बल्कि मनुष्य से भिन्न हो। जैसे—अलौकिक या देव-पुरुष वि०=अमानुषी।
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अमानुषिक  : वि०=अ-मानुषी।
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अमानुषी  : वि० [सं० अमानुषीय] १. ऐसा निंदित या पाशविक आचरण या व्यवहार जो सभ्य मानव के स्वभाव के प्रतिकूल या विपरीत हो। जैसे—अमानुषी शासन। २. मनुष्य के अधिकार या शक्ति से बाहर का। ३. मनुष्य-रहित। मनुष्यों से शून्य। उदाहरण—अमानुषी भूमि अवानरी करौ।—केशव।
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अमान्य  : वि० [सं० न० त०] १. (बात) जो मानी जाने के योग्य न हो। जो माना न जा सके। २. जो मान अथवा आदर के योग्य न हो।
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अमाप  : वि० [सं० न० त०] १. जो मापा न जा सके या जिसका माप न हो सके। २. जिसके परिणाम का अंदाजा न हो सके। अपरिमित। ३. असीम। बेहद। ४. बहुत अधिक।
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अमापनीय  : वि० [सं० न० त०] जो मापा न जा सकता हो। (इममेजरेबुल)
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अमापित  : वि० [सं० न० त०] जो मापा न गया हो। (अनमेजर्ड)
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अमाप्य  : वि० [सं० न० त०]=अमापनीय।
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अमामसी  : स्त्री० [सं० ब० स० ङीष्] अमावस्या।
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अमामा  : पुं० [अ० अम्मामः] एक विशिष्ट प्रकार की बड़ी और भारी पगड़ी।
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अमाय  : वि०=अमाया।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमाया  : वि० [सं० अमाय] १. माया से रहित। २. छल-कपट, स्वार्थ आदि से रहित। ३.सांसारिक प्रेम, मोह आदि से रहित। निर्लिप्त। स्त्री० [सं० ] माया का अभाव।
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अमायिक  : वि० [सं० न० त०] १. जो माया (छल-कपट,धोखे) आदि से रहित हो। २. जिसमें माया (अनुराग, प्रेम, मोह) आदि न हो। ३. स्वार्थ आदि भावों से रहित।
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अमायी (यिन्)  : वि० [सं० न० त०]=अमायिक।
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अमार  : पुं० [फा० अंबार] अन्न रखने का खत्ता। बखार। पुं०=अमड़ा। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमारग  : पुं०=अमार्ग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमारी  : स्त्री० [सं० अमात] १. आमड़ा नामक वृक्ष। २. आमड़े का फल। स्त्री० =अंवारी (हाथी पर की हौदी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमार्ग  : पुं० [सं० न० त०] १. अनुचित, निंदनीय या बुरा मार्ग। कु-मार्ग। २. निंदनीय आचरण। बुरा चाल-चलन।
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अमार्जित  : वि० [सं० न० त०] १. जिसका मार्जन अर्थात् सुधार या संस्कार न हुआ हो। गंदा, भद्दा या अनगढ़। २. (व्यक्ति) जिसने मार्जन न किया हो।
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अमार्ज्य  : वि० [सं० √मृज्(शुद्धि)+ण्यत्, न० त०] १. जिसका मार्जन न हो सके। २. जिसका मार्जन करना उचित न हो।
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अमाल  : पुं० [अ० अमल] अमल रखनेवाला व्यक्ति। हाकिम। शासक। पुं० दे० ‘आमाल’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमालनामा  : पुं०=आमालनामा।
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अमावट  : स्त्री० [सं० आम, हिं० आम्र+सं० आवर्त, प्रा० आवह] पके आम को निचोड़कर निकाले हुए रस की जमाई हुई परत या तह। स्त्री० [?] पहिना जाति की एक प्रकार की मछली।
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अमावना  : अ० स०=अमाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमावस  : स्त्री० [देश०] अमावस्या।
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अमावस्या  : स्त्री० [सं० अमा√वस्(बसना)+ण्यत्नि० ह्रस्व, प्रा० आओस, गुं० अमास, सिं० उमासु, मरा० अवशी, अवस, हिं० अमावस] १. चौद्र मास के कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन जिसमें रात को चंद्रमा की एक भी कला नहीं दिखाई देती। २. हठ योग में ध्यान की वह अवस्था जिसमें ईड़ा (चंद्रमा) और पिंगला (सूर्य) दोनों नाड़ियों का लय हो जाता है।
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अमावास्य  : वि० [सं० अमावास्या+अण्] जो अमावस्या के दिन (या रात को) पैदा हुआ या बना हो।
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अमांस  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसके शरीर में मांस की मात्रा बहुत कम हो। दुबला-पतला। २. जिसमें मांस बिलकुल न हो। मांस-रहित। पुं० [न० त०] वह जो मांस न हो।
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अमाह  : पुं० [सं० अमांस] एक प्रकार का नेत्र-रोग। नाखूना।
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अमाही  : वि० [हिं० अमार्ह] १. अमाह-रोग-संबंधी। २. जिसे अमाह (रोग) हुआ हो।
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