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अशोक  : वि० [सं० न० ब०] जिसे या जिसमें शोक न हो। शोक रहित। पुं० १. एक प्रकार का प्रसिद्ध बड़ा पेड़ जिसकी पत्तियाँ धार्मिक और मांगलिक अवसरों पर काम में आती है। २. पारा। ३. विष्णु।
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अशोक-पूर्णिमा  : स्त्री० [कर्म० स०] फाल्गुन की पूर्णिमा।
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अशोक-वनिका-न्याय  : पुं० [ष० त०] लोक-व्यवहार में एक न्याय या दृष्टांत जिसका प्रयोग ऐसे अवसरों पर होता है, जब किसी बात का उसी प्रकार कारण नहीं बताया जा सकता, जिस प्रकार यह नहीं बतलाया जा सकता कि रावण ने सीता को अशोक-वाटिका में ही क्यों रखा, किसी और जगह क्यों नहीं रखा।
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अशोक-वाटिका  : स्त्री० [ष० त०] १. वह स्थान जहाँ अशोक के बहुत वृक्ष हों। २. लंका में उक्त प्रकार की वह वाटिका जिसमें रावण ने सीता को ले जाकर रखा था।
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अशोक-षष्ठी  : स्त्री० [कर्म० स०] चैत्र शुक्ला षष्ठी।
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अशोका  : स्त्री० [सं० अशोक+टाप्] कुटनी।
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अशोकारि  : पुं० [सं० अशोक√ऋ (गति)+इन] कदंब। (वृक्ष)।
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अशोकाष्टमी  : स्त्री० [सं० असोक-अष्ट्मी, कर्म० स०] चैक्ष शुक्ला अष्टमी।
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