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ऊर्ध्व  : अव्य० [सं० उत√हा (गति)+ड, पृषो, उर्आदेश] ऊपर की ओर। ऊपर। वि० १. ऊपर की ओर सीधा गया हुआ। उदग्र। (वर्टिकल) २. ऊँचा। ३. खड़ा। स्त्री० १. दस दिशाओं में से एक जो सिर के ठीक ऊपर की ओर पड़ती है। २. संगीत में एक प्रकार की ताल।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ऊर्ध्व  : अव्य० [सं० उत√हा (गति)+ड, पृषो, उर्आदेश] ऊपर की ओर। ऊपर। वि० १. ऊपर की ओर सीधा गया हुआ। उदग्र। (वर्टिकल) २. ऊँचा। ३. खड़ा। स्त्री० १. दस दिशाओं में से एक जो सिर के ठीक ऊपर की ओर पड़ती है। २. संगीत में एक प्रकार की ताल।
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ऊर्ध्व-गति  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] १. ऊपर की ओर की चाल या गति। २. मुक्ति। मोक्ष। वि० जिसकी गति ऊपर की ओर हो।
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ऊर्ध्व-गति  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] १. ऊपर की ओर की चाल या गति। २. मुक्ति। मोक्ष। वि० जिसकी गति ऊपर की ओर हो।
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ऊर्ध्व-चरण  : वि० [ब० स०] जिसके पैर ऊपर की ओर हों। पुं० शरभ नाम का कल्पित और पौराणिक सिंह, जिसके चार पैर नीचे और चार पैर ऊपर को उठे हुए माने गये हैं।
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ऊर्ध्व-चरण  : वि० [ब० स०] जिसके पैर ऊपर की ओर हों। पुं० शरभ नाम का कल्पित और पौराणिक सिंह, जिसके चार पैर नीचे और चार पैर ऊपर को उठे हुए माने गये हैं।
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ऊर्ध्व-दृष्टि  : वि० [ब० स०] १. जिसकी दृष्टि या निगाह ऊपर की ओर हो। २. जो बहुत ऊपर उठना चाहता हो। उच्चाकांक्षी। स्त्री० योग की एक क्रिया जिसमें दृष्टि ऊपर ले जाकर त्रिकुटी पर जमाई जाती है।
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ऊर्ध्व-दृष्टि  : वि० [ब० स०] १. जिसकी दृष्टि या निगाह ऊपर की ओर हो। २. जो बहुत ऊपर उठना चाहता हो। उच्चाकांक्षी। स्त्री० योग की एक क्रिया जिसमें दृष्टि ऊपर ले जाकर त्रिकुटी पर जमाई जाती है।
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ऊर्ध्व-देव  : पुं० [कर्म० स०] विष्णु।
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ऊर्ध्व-देव  : पुं० [कर्म० स०] विष्णु।
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ऊर्ध्व-देह  : स्त्री० [कर्म० स०] वह देह या शरीर जो मनुष्य को मरने के बाद ऊपर की ओर जाने के समय प्राप्त होता है। सूक्ष्म या लिंग शरीर।
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ऊर्ध्व-देह  : स्त्री० [कर्म० स०] वह देह या शरीर जो मनुष्य को मरने के बाद ऊपर की ओर जाने के समय प्राप्त होता है। सूक्ष्म या लिंग शरीर।
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ऊर्ध्व-द्वार  : पुं० [कर्म० स०] ब्रह्मांड का छिद्र। ब्रह्मरंध्र।
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ऊर्ध्व-द्वार  : पुं० [कर्म० स०] ब्रह्मांड का छिद्र। ब्रह्मरंध्र।
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ऊर्ध्व-नयन  : वि० [ब० स०] जिसकी आँखें ऊपर की ओर हों। पुं० ऊर्ध्व चरम या शरभ नामक पौराणिक सिंह।
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ऊर्ध्व-नयन  : वि० [ब० स०] जिसकी आँखें ऊपर की ओर हों। पुं० ऊर्ध्व चरम या शरभ नामक पौराणिक सिंह।
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ऊर्ध्व-पाद  : पुं०=ऊर्ध्व-चरण।
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ऊर्ध्व-पुंड्र  : पुं० [कर्म० स०] वैष्णव या रामानंद संप्रदायवालो का तिलक जो माथे पर खड़े बल में लगाया जाता है।
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ऊर्ध्व-पुंड्र  : पुं० [कर्म० स०] वैष्णव या रामानंद संप्रदायवालो का तिलक जो माथे पर खड़े बल में लगाया जाता है।
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ऊर्ध्व-बाहु  : वि० [ब० स०] जिसकी भुजाएँ ऊपर की ओर उठी हों। पुं० एक प्रकार के तपस्वी जो सदा अपनी एक बाँह ऊपर उठाये रहते हैं।
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ऊर्ध्व-बाहु  : वि० [ब० स०] जिसकी भुजाएँ ऊपर की ओर उठी हों। पुं० एक प्रकार के तपस्वी जो सदा अपनी एक बाँह ऊपर उठाये रहते हैं।
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ऊर्ध्व-मंडल  : पुं० [कर्म० स०] वायुमंडल का वह भाग जो अधोमंडल से ऊपर है और पृथ्वीतल से २0 मील की ऊंचाई तक माना जाता है। इसमें तापमान प्रायः एक-सा रहता है।
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ऊर्ध्व-मंडल  : पुं० [कर्म० स०] वायुमंडल का वह भाग जो अधोमंडल से ऊपर है और पृथ्वीतल से २0 मील की ऊंचाई तक माना जाता है। इसमें तापमान प्रायः एक-सा रहता है।
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ऊर्ध्व-मुख  : वि० [ब० स०] जिसका मुँह ऊपर की ओर हो। पुं० अग्नि। आग।
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ऊर्ध्व-मुख  : वि० [ब० स०] जिसका मुँह ऊपर की ओर हो। पुं० अग्नि। आग।
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ऊर्ध्व-मूल  : पुं० [ब० स०] यह जगत् या संसार जिसकी जड़ या मूल ऊपर की ओर मानी गई है।
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ऊर्ध्व-मूल  : पुं० [ब० स०] यह जगत् या संसार जिसकी जड़ या मूल ऊपर की ओर मानी गई है।
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ऊर्ध्व-रेखा  : स्त्री० [कर्म० स०] १. सामुद्रिक में हाथ की एक सीधी लंबी रेखा जो ऐश्वर्य और सौभाग्य की सूचक मानी गई है। २. उक्त प्रकार की एक रेखा जो विष्णु के अवतारों के चरण-चिन्हों में से एक मानी गई है।
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ऊर्ध्व-रेखा  : स्त्री० [कर्म० स०] १. सामुद्रिक में हाथ की एक सीधी लंबी रेखा जो ऐश्वर्य और सौभाग्य की सूचक मानी गई है। २. उक्त प्रकार की एक रेखा जो विष्णु के अवतारों के चरण-चिन्हों में से एक मानी गई है।
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ऊर्ध्व-रेता (तस्)  : वि० [ब० स०] योग की क्रियाओं द्वारा अपने वीर्य की रक्षा करनेवाला और अपना वीर्य ब्रह्मरंध्र की ओर ले जानेवाला (अर्थात् पूर्ण ब्रह्मचारी)। पुं० १. महादेव। शिव। २. भीष्म पितामह। ३. हनुमान ४. सनक और सनंदन महर्षि। ५. संन्यासी।
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ऊर्ध्व-रेता (तस्)  : वि० [ब० स०] योग की क्रियाओं द्वारा अपने वीर्य की रक्षा करनेवाला और अपना वीर्य ब्रह्मरंध्र की ओर ले जानेवाला (अर्थात् पूर्ण ब्रह्मचारी)। पुं० १. महादेव। शिव। २. भीष्म पितामह। ३. हनुमान ४. सनक और सनंदन महर्षि। ५. संन्यासी।
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ऊर्ध्व-लोक  : पुं० [कर्म० स०] १. आकाश। २. स्वर्ग।
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ऊर्ध्व-लोक  : पुं० [कर्म० स०] १. आकाश। २. स्वर्ग।
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ऊर्ध्व-वात  : पुं० [कर्म० स०] १. मुँह के रास्ते से निकलनेवाली वात। २. अधिक डकार आने का रोग।
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ऊर्ध्व-वात  : पुं० [कर्म० स०] १. मुँह के रास्ते से निकलनेवाली वात। २. अधिक डकार आने का रोग।
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ऊर्ध्व-वायु  : स्त्री० [कर्म० स०] डकार।
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ऊर्ध्व-वायु  : स्त्री० [कर्म० स०] डकार।
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ऊर्ध्व-विन्दु  : पुं० [कर्म० स०] १. सिर के ऊपर का सबसे ऊँचा विन्दु या स्थान। शीर्ष-विंदु। (ख-स्वस्तिक) २. अनुस्वार।
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ऊर्ध्व-विन्दु  : पुं० [कर्म० स०] १. सिर के ऊपर का सबसे ऊँचा विन्दु या स्थान। शीर्ष-विंदु। (ख-स्वस्तिक) २. अनुस्वार।
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ऊर्ध्व-श्वास  : पुं० [कर्म० स०] १. ऊपर की ओर आने या चढ़नेवाला श्वास। २. मरने के समय, श्वास की वह गति जो अधिकतर ऊपर की ओर होती है।
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ऊर्ध्व-श्वास  : पुं० [कर्म० स०] १. ऊपर की ओर आने या चढ़नेवाला श्वास। २. मरने के समय, श्वास की वह गति जो अधिकतर ऊपर की ओर होती है।
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ऊर्ध्वग  : वि० [सं० ऊर्ध्व√गम् (जाना)+ड] १. ऊपर की ओर जानेवाला। २. जो सीधा ऊपर की ओर गया हो। उदाहरण—ऊर्ध्वग श्रंगों के समीर को, आओ साँसो से उर में भर।—पंत।
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ऊर्ध्वग  : वि० [सं० ऊर्ध्व√गम् (जाना)+ड] १. ऊपर की ओर जानेवाला। २. जो सीधा ऊपर की ओर गया हो। उदाहरण—ऊर्ध्वग श्रंगों के समीर को, आओ साँसो से उर में भर।—पंत।
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ऊर्ध्वगामी (मिन्)  : वि० [सं० ऊर्ध्व√गम्+णिनि] १. ऊपर या ऊपर की ओर जानेवाला। २. जो ऊपर की ओर गया हुआ हो। ३. मुक्त होकर ऊपर या स्वर्ग की ओर जानेवाला।
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ऊर्ध्वगामी (मिन्)  : वि० [सं० ऊर्ध्व√गम्+णिनि] १. ऊपर या ऊपर की ओर जानेवाला। २. जो ऊपर की ओर गया हुआ हो। ३. मुक्त होकर ऊपर या स्वर्ग की ओर जानेवाला।
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ऊर्ध्वमंथी (थिन्)  : पुं० [सं० ऊर्ध्व√मन्थ् (मथना)+णिनि]=ऊर्ध्वदेता।
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ऊर्ध्वमंथी (थिन्)  : पुं० [सं० ऊर्ध्व√मन्थ् (मथना)+णिनि]=ऊर्ध्वदेता।
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ऊर्ध्वलिंगी  : पुं० [सं० ऊर्ध्व-लिंग, कर्म० स०+इनि] १. शिव। २. ब्रह्मचारी।
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ऊर्ध्वलिंगी  : पुं० [सं० ऊर्ध्व-लिंग, कर्म० स०+इनि] १. शिव। २. ब्रह्मचारी।
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ऊर्ध्वशायी (यिन्)  : वि० [सं० ऊर्ध्व√शी (सोना)+णिनि] ऊपर की ओर मुँह करके सोनेवाला। पुं० शिव।
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ऊर्ध्वशायी (यिन्)  : वि० [सं० ऊर्ध्व√शी (सोना)+णिनि] ऊपर की ओर मुँह करके सोनेवाला। पुं० शिव।
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ऊर्ध्वा  : स्त्री० [सं० ऊर्ध्व+टाप्] एक प्रकार की पुरानी नाव जो 3२ हाथ लंबी, १६ हाथ चौड़ी और १६ हाथ ऊँची होती थी।
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ऊर्ध्वा  : स्त्री० [सं० ऊर्ध्व+टाप्] एक प्रकार की पुरानी नाव जो 3२ हाथ लंबी, १६ हाथ चौड़ी और १६ हाथ ऊँची होती थी।
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ऊर्ध्वाकर्षण  : पुं० [सं० ऊर्ध्व-आकर्षण, कर्म० स०] ऊपर की ओर होनेवाला आकर्षण या खिंचाव।
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ऊर्ध्वाकर्षण  : पुं० [सं० ऊर्ध्व-आकर्षण, कर्म० स०] ऊपर की ओर होनेवाला आकर्षण या खिंचाव।
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ऊर्ध्वांग  : पुं० [ऊर्ध्व-अंग, कर्म० स०] १. किसी चीज का ऊपरी अंग या भाग। २. शरीर का ऊपरी अंग या भाग, अर्थात् सिर।
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ऊर्ध्वांग  : पुं० [ऊर्ध्व-अंग, कर्म० स०] १. किसी चीज का ऊपरी अंग या भाग। २. शरीर का ऊपरी अंग या भाग, अर्थात् सिर।
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ऊर्ध्वायन  : पुं० [सं० ऊर्ध्व-अयन, कर्म० स०] १. ऊपर की ओर जाना या उड़ना। २. ऊपर की ओर अर्थात् परलोक या स्वर्ग जाने का मार्ग।
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ऊर्ध्वायन  : पुं० [सं० ऊर्ध्व-अयन, कर्म० स०] १. ऊपर की ओर जाना या उड़ना। २. ऊपर की ओर अर्थात् परलोक या स्वर्ग जाने का मार्ग।
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ऊर्ध्वारोह  : पुं० [सं० ऊर्ध्व-आरोह, कर्म० स०] १. ऊपर की चढ़ना या जाना। २. मर कर स्वर्ग जाना। ३. मृत्यु।
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ऊर्ध्वारोह  : पुं० [सं० ऊर्ध्व-आरोह, कर्म० स०] १. ऊपर की चढ़ना या जाना। २. मर कर स्वर्ग जाना। ३. मृत्यु।
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ऊर्ध्वारोहण  : पुं० [सं० ऊर्ध्व-आरोहण, कर्म० स०] ऊर्ध्वारोह।
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ऊर्ध्वारोहण  : पुं० [सं० ऊर्ध्व-आरोहण, कर्म० स०] ऊर्ध्वारोह।
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