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गुह्य  : वि० [सं०Ö गुह+यत्] १. गुप्त रखने या छिपाये जाने के योग्य। २. (अलौकिक या रहस्यमय बात या वस्तु) जिसका ठीक-ठीक अर्थ या स्वरूप समझना कठिन हो। जिसे जानने या समझने के लिए विशेष आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता हो। (एसोट्रिक) ३. रहस्यमय। पुं० १. छल। कपट। २. भेद। रहस्य। ३. ढोंग। ४. शरीर के गुप्त अंग। जैसे–गुदा, भग, लिंग आदि। ४. कछुआ। ६. विष्णु। ७. शिव।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
गुह्य  : वि० [सं० गृह+यत्] १. घर या घर-बार से संबंध रखनेवाला। घर का। २. घर में किया जाने या होनेवाला। जैसे–गृह्य-कर्म। पुं० १. घर में रहनेवाली अग्नि या आग। २. दीपक। दीआ। उदाहरण–देखौ पतंग गृह्य मन रीझा।–जायसी। वि०[सं० Öग्रह् (पकड़ना) +क्यप्] १. ग्रहण किये जाने के योग्य। जिसे ग्रहण कर सके। २. पकड़कर घर में रखा या पाला हुआ। पालतू।
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गुह्य-दीपक  : पुं० [सं० कर्म० स०] जुगनूँ।
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गुह्य-द्वार  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. मल-द्वार। गुदा। २. चोर-दरवाजा।
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गुह्यक  : पुं० [सं०√Öगुह्+ण्वुल्-अक,पृषो० सिद्धि] किन्नर, गंधर्व, यक्ष आदि देवताओं की तरह की एक देव योनि जो कुबेर की संपत्ति आदि की रक्षा करती है।
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गुह्यकेश्वर  : पुं० [सं० गुह्यक-ईश्वर, ष० त०] कुबेर।
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