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जुग  : पुं० [सं० युग्म] १. एक ही तरह की दो चीजों की जोड़ी। जोड़ युग्म। मुहावरा–जुग टूटना या फूटना=प्रायः साथ रहनेवाली दो वस्तुओं या व्यक्तियों का किसी प्रकार एक दूसरों से अलग हो जाना। जुग बैठना या मिलना=एक ही तरह की दो वस्तुओं या व्यक्तियों का घनिष्ठ संपर्क या संग-साथ होना। २. चौसर के खेल में दो गोटियों का एक ही घर में एक साथ बैठने की अवस्था। विशेष–ऐसी गोटियों में से कोई गोटी तब तक मारी नहीं जा सकती, जब तक वे दोनों एक दूसरे से अलग या आगे-पीछे न हो जायँ। ३. करघे में का वह डोरा जो ताने के सूतों को अलग-अलग रखने के लिए होता है। पद–पुं० =युग। (काल-विभाग)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जुगजुग  : अव्य० [हिं० जुग] अनेक युगों अर्थात् बहुत दिनों तक। जैसे–बच्चा तुम जुग-जुग जीओ। (आशीष)।
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जुगजुगाना  : अ० [हिं० जगना=प्रज्वलित होना] १. रह-रहकर थोड़ा थोड़ा चमकना। टिमटिमाना। २. अपने अस्तित्व का परिचय या प्रमाण देते रहना। ३. नया जीवन पाकर हीन दशा से कुछ अच्छी दशा में आना। उभरना।
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जुगजुगी  : स्त्री० [हिं० जुगजुगाना] १. शकरखोरा नाम की चिड़िया। २. गले में पहनने का एक आभूषण। जुगनूँ।
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जुगत  : स्त्री० [सं० युक्ति] [कर्त्ता जुगती] १. बहुत सोच-समझकर किया जाने वाला उपाय। तरकीब। युक्ति। २. आचार, व्यवहार आदि में दिखाई देनेवाला कौशल। जैसे–खूब जुगत से गृहस्थी चलाना।
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जुगती  : पुं० [हिं० जगत] १. व्यक्ति जो समझ-बूझकर कोई विकट काम करने का उत्तम उपाय निकाले। २. किफायत से घर-गृहस्थी का खरच चलानेवाला व्यक्ति। स्त्री०=जुगत (युक्ति)।
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जुगंतै  : वि०=जाग्रत। उदाहरण–जानि जुगेतै जम कौं करण प्रथीपुर अन्त।–रासो।
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जुगनी  : स्त्री०=जुगनूँ।
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जुगनूँ  : पुं० [हिं० जुगजुगाना] १. एक प्रसिद्ध कीड़ा जिसका पिछला भाग रात में खूब चमकता है। खद्योत। २. पान के पत्ते के आकार का गले का एक गहना। जुगजुगी। रामनवमी। ३. गले में पहनने के गहनों में नीचे लटकनेवाला खंड (पेन्डेन्ट)।
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जुगम  : वि०=युग्म।
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जुगराफिया  : पुं० [अ०] भूगोल।
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जुगल  : वि०=युगल।
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जुगलिया  : पुं० [?] जैन कथाओं के अनुसार एक कल्पित प्राणी जिसके ४०९६ बाल मिलकर आज कल के मनुष्यों के एक बाल के बराबर हों।
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जुगवना  : स० [सं० योग+अवना (प्रत्यय)] १. कोई आवश्यक वस्तु कहीं से लाकर उपस्थित करना। २. कोई कठिन कार्य सिद्ध करने की युक्ति। क्रि० प्र०–बैठाना।
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जुगादरी  : वि० [सं० युगादि से] बहुत पुराना।
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जुगादि  : पुं० [सं० युगादि] १. युग का आरंभिक समय। २. बहुत पुराना समय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जुगाना  : स०=जुगवाना।
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जुगार  : स्त्री०=जुगाली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जुगारना  : अ०=जुगालना।
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जुगालना  : अ० [सं० उद्विलन=उगलना] सींगवालें पशुओं (जैसे–गाय भैंस, बकरी आदि), का जुगाली या पागुर करना।
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जुगाली  : स्त्री० [हिं० जुगालना] सींगवाले पशुओं का जल्दी-जल्दी खाये या निगले हुए चारे को गले से थोड़ा निकालकर फिर से अच्छी तरह चबाना। पागुर।
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जुगुत, जुगुति  : स्त्री०=जुगत।
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जुगुप्सक  : वि० [सं०√गुप् (निंदा करना)+सन् द्वित्वादि+ण्वुल्-अक] दूसरे की व्यर्थ में निंदा करनेवाला। निंदक।
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जुगुप्सन  : पुं० [सं०√गुप्+सन्, द्वित्वादि+ल्युट्-अन] [वि० जुगुप्सु, जुगुप्सित] जुगुप्सा या निंदा करना।
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जुगुप्सा  : स्त्री० [सं०√गुप्+सन्, द्वित्वादि+अ–टाप्] १. दूसरों की की जानेवाली निंदा या बुराई। २. उपेक्षापूर्वक की जानेवाली घृणा। ३. योग शास्त्र के अनुसार अपने शरीर तथा संसार के लोगों के प्रति होनेवाली वह घृणा जो मन के परम शुद्ध हो जाने पर होती है।
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जुगुप्सित  : भू० कृ० [सं०√गुप्+सन्, द्वित्वादि+क्त] १. जिसकी जुगुप्सा हुई हो। निंदक। २. घृणित।
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जुगुप्सु  : वि० [सं०√गुप्+सन्, द्वित्वादि+उ] बुराई करनेवाला। निंदक।
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जुगुल  : वि०=युगल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जुग्गिनवै  : पुं० [सं० योगिनी+पति] दिल्ली का राजा पृथ्वीराज।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जुग्गिनी  : स्त्री० [सं० योगिनी] योगिनीपुर। दिल्ली।
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जुग्ण  : पुं०=युग।
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