| शब्द का अर्थ | 
					
				| तिक्त					 : | वि० [सं०√तिज् (तीखा करना)+क्त] जो गुरुच, चिरायते आदि के स्वाद की तरह का हो। तीता। पुं० १. पित्त-पापड़ा। २. कुटज। कुरैया। ३. वरुण वृक्ष। ४. खुशबू। सुंगंध। | 
			
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				| तिक्त-कांड					 : | पुं० [ब० स०] चिरायता। | 
			
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				| तिक्त-गंधा					 : | स्त्री० [ब० स०, टाप्] वराहीकंद। | 
			
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				| तिक्त-गुंजा					 : | स्त्री० [उपमि० स० परनिपात] कंजा। करंज। | 
			
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				| तिक्त-तंडुला					 : | स्त्री० [ब० स०] पिप्पली। पीपल। | 
			
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				| तिक्त-तुंडी					 : | स्त्री० [सं०=तिक्त-तुंबी, पृषो० सिद्धि] कड़ई तुरई। | 
			
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				| तिक्त-तुंबी					 : | स्त्री० [कर्म० स०] कड़आ कद्दू। तितलौकी। | 
			
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				| तिक्त-दुग्धा					 : | स्त्री० [ब० स०] १. खिरनी। २. मेढ़ासिंगी। | 
			
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				| तिक्त-धातु					 : | स्त्री० [कर्म० स०] शरीर के अंदर का पित्त जो तिक्त या तीता होता है। | 
			
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				| तिक्त-धृत					 : | पुं० [कर्म० स०] वैद्यक में, कुछ विशिष्ट औषधियों के योग से बनाया हुआ घी जो बहुत से रोगों का नाशक माना जाता है। | 
			
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				| तिक्त-पत्र					 : | पुं० [ब० स०] ककोडा़। खेखसा। | 
			
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				| तिक्त-पर्णी					 : | स्त्री० [सं० ब० स०, ङीष्] कचरी। पेंहटा। | 
			
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				| तिक्त-पर्वा					 : | पुं० [ब० स० टाप्] १. दूब। दूर्वा। २. हुलहुल। ३. जेठी मधु। मुलेठी। ४. गिलोय। गुडुच। | 
			
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				| तिक्त-पुष्पा					 : | स्त्री० [ब० स० टाप्] पाठा। | 
			
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				| तिक्त-फल					 : | पुं० [ब० स०] रीठा। निर्मलफल। | 
			
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				| तिक्त-फला					 : | स्त्री० [सं० ब० स० टाप्] १. भटकटैया। २. खरबूजा। ३. कचरी। | 
			
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				| तिक्त-भद्रक					 : | पुं० [कर्म० स०] परवल पटोल। | 
			
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				| तिक्त-यवा					 : | स्त्री० [सं० ब० स० टाप्] संखिनी। | 
			
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				| तिक्त-वल्ली					 : | स्त्री० [कर्म० स०] मूर्वालता। मरोड़फली। चुरनहार। | 
			
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				| तिक्त-वीजा					 : | स्त्री० [ब० स० टाप्] तितलौकी। कडुआ कद्दू। | 
			
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				| तिक्त-शाक					 : | पुं० [ब० स०] १. खैर का पेड़। २. वरुण वृक्ष। ३. पत्र सुन्दर नाम का साग। | 
			
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				| तिक्त-सार					 : | पुं० [ब० स०] १. रोहिस नाम की घास। २. खैर का पेड़। | 
			
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				| तिक्तक					 : | वि० [सं० तिक्त+कन्] तिक्त। पुं० १. चिरायता। २. नीम। ३. काला खैर। ४. इंगुदी। हिंगोट। ५. परवल। पटोल। ६. कुटज। कुरैया। | 
			
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				| तिक्तकंदिका					 : | स्त्री० [सं० तिक्त-कंद, मध्य० स०+कन्-टाप्, इत्व] गंधपत्ता। बनकचूर। | 
			
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				| तिक्तका					 : | स्त्री० [सं० तिक्त√कै (प्रकाशित होना)+क–टाप्] कड़ुआ कद्दू। तितलौकी। | 
			
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				| तिक्तगंधिका					 : | स्त्री० [सं० तिक्तगन्धा+कन्-टाप्, ह्रस्व, इत्व] वराहीकंद। | 
			
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				| तिक्तता					 : | स्त्री० [सं० तिक्त+तल्–टाप्] तिक्त होने की अवस्था गुण या भाव। तीतापन। | 
			
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				| तिक्तरी					 : | स्त्री० [?] सँपेरों की बीन। तूमड़ी। | 
			
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				| तिक्तरोहिणिका					 : | स्त्री० [सं० तिक्तरोहिणी+कन्-टाप्, हृस्व] कुटकी। | 
			
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				| तिक्तरोहिणी					 : | स्त्री० [सं० तिक्त√रुह् (उगना)+णिनि-ङीप्] कुटकी। | 
			
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				| तिक्ता					 : | स्त्री० [सं० तिक्त+अच्-टाप्] १. कुटकी। २. पाठा। पाढ़ा। ३. खरबूजा। ४. नन-छिकनी। ५. यवतिक्ता नाम की लता। | 
			
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				| तिक्ताक्ति					 : | स्त्री० [सं० तिक्त से] एक प्रकार का वाष्प (गैस) जो वर्ण-हीन और उग्र गंधवाला होता है। उसके योगसे जमे हुए कण प्रायः औषध, खाद आदि के काम आते हैं। (एमोनिया) | 
			
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				| तिक्ताख्या					 : | स्त्री० [सं० तिक्त-आख्या, ब० स०] तितलौकी। | 
			
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				| तिक्तांगा					 : | स्त्री० [सं० तिक्त-अंग, ब० स० टाप्+अच्+टाप्] पाताल गारुड़ी लता। छिरेंटा। | 
			
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				| तिक्तिका					 : | स्त्री० [सं० तिक्ता+कन्-टाप्, इत्व] १. तितलौकी। २. काक माछी। | 
			
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