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फर्ज  : पुं० [अ० फ़र्ज] १. मुसलमानी धर्मानुसार वे आवश्यक कर्म जिसे न करने से मनुष्य धार्मिक दृष्टि से दोषी और पतित होता है। आवश्यक धार्मिक कृत्य। जैसे—नामज, रोजा आदि कर्म हर मुसलमान के लिए फर्ज है। २. आवश्यक और कर्त्तव्य कर्म। जैसे—मालिक की खिदमत करना नौकर का फर्ज है। क्रि० प्र०—अदा करना। ३. तर्क वितर्क के प्रसंग में, वह तथ्य या बात जो वास्तविक न होने पर कुछ समय के लिए यों ही कल्पित कर ली या मान ली जाय। अनुमानिक बात। जैसे—फर्ज कीजिए कि आप वहाँ चले गये, तो क्या होगा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
फर्ज़ंद  : पुं०=फरजंद। (बेटा)।
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फर्जी  : वि० [फा० फ़र्जी] १. जो फर्ज कर लिया अर्थात् तर्क-वितर्क के लिए मान लिया गया हो। २. कल्पना के आधार पर प्रस्तुत किया हुआ। कल्पित। ३. जिसकी कोई वास्तविक या विशिष्ट सत्ता न हो। पुं० [फा० फर्जी] शतरंज की फरजी नाम की गोटी।
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