शब्द का अर्थ
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मति :
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स्त्री० [स०√मन्+क्तिन्] १. बुद्धि। अक्ल। २. राय। सम्मति। ३. इच्छा। कामना। ४. याद। स्मृति। ५. साहित्य में एक संचारी भाव। यह उस समय माना जाता है जब कोई अनुचित बात हो जाती है तब उसके बाद नीति की कोई बात सूझती है। वि० १. बुद्धिमान। २. चतुर। चालाक। अव्य०=मत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मति-दर्शन :
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पुं० [सं० ष० त०] वह शक्ति जिसके अनुसार दूसरे की योग्यता का पता लगाया जाता है। |
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मति-भ्रम :
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पुं० [सं० ष० त०] अस्वस्थ अथवा विकृत बुद्धि या समझ के कारण होनेवाला वह भ्रम जिसके फलस्वरूप मनुष्य कुछ का कुछ समझने लगता है, अथवा उसे किसी अवास्तविक घटना या दृश्य का भान होने लगता है (हैल्यूसिनेशन)। |
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मति-भ्रंश :
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पुं० [सं० ष० त०] वह अवस्था जिसमें बुद्धि कुछ भी सोच-समझ सकने में असमर्थ होती है। बुद्धि-भ्रंश। |
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मति-मंद :
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वि० [सं० मंदमति] मूर्ख। |
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मति-मांद्य :
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पुं० [ष० त०] मति-मंद होने की अवस्था या भाव। |
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मतिदा :
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स्त्री० [सं० मति√दा (देना)+क,+टाप्] १. ज्योतिष्मती नाम की लता। २. सेमल। शालमलि। |
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मतिन :
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अव्य० [सं० मत् या वत् ?] सदृश। समान (पूरब)। अव्य०=मत (निषेधार्थक)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मतिभंगी (गिन्) :
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वि० [सं० मति√भञ्ज् (नष्ट करना)+णिनि] मति या बुद्धि नष्ट करनेवाला। |
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मतिमंत :
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वि० [सं० मतिमत्] बुद्धिमान्। चतुर। |
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मतिमान् (मत्) :
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वि० [सं० मति+मतुप्] बुद्धिमान। समझदार। |
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मतिमाह :
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वि०=मतिमान्।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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मतिवंत :
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वि०=मतिमंत। |
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