शब्द का अर्थ
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					मय					 :
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					पुं० [सं०√मय् (शीघ्र जाना)+अच्] [स्त्री० मयी] १. ऊँट। २. खच्चर। ३. घोड़ा। ४. आराम। सुख। ५. एक प्राचीन देश का नाम। ६. पुराणानुसार एक प्रसिद्ध दानव जो बहुत बड़ा शिल्पी था। इसे असुरों और दैत्यों का शिल्पी मानते हैं। कहते हैं कि मन्दोदरी इसी की कन्या थी। ७. अमेरिका के मोक्सिको नामक देश के प्राचीन मूल अधिवासी जो प्राचीन काल में उन्नत और सभ्य समझे जाते थे। प्रत्य० [सं०] तद्दित का एक प्रत्यय जो तद्रूप विकार और प्राचुर्य अर्थ में शब्दों के साथ लगा जाता है। और ज नीचे लिखे अर्थ देता है— १. किसी चीज या बात से अच्छी तरह पूर्ण। भरा हुआ या युक्त। जैसे—आनन्दमय। २. आधार या आश्रय के रूप में होनेवाला। जैसे—अन्नमय कोश, प्राणमय कोश। स्त्री० दे० ‘मैं’ (शराब)।				 | 
			
			
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					मय-सुता					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] मय दानव की कन्या; मन्दोदरी।				 | 
			
			
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					मयंक					 :
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					पुं० [सं० मृगाँक] चन्द्रमा।				 | 
			
			
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					मयंक-मुख					 :
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					वि० [हिं० मयंक+मुख] [स्त्री० मयंकमुखी] चन्द्रमा के समान सुन्दर मुखवाला।				 | 
			
			
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					मयगल					 :
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					पुं० [सं० मंदकल, प्रा० मयगल] मत्त हाथी। मदमत्त हाथी।				 | 
			
			
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					मयत्री					 :
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					स्त्री०=मैत्री (मित्रता)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					मयंद					 :
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					पुं० [सं० मृगेन्द्र] १. शेर। सिंह। २. रामकी सेना का एक बन्दर।				 | 
			
			
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					मयंदी					 :
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					स्त्री० [देश०] लोहे की वह छोटी सामी जो गाड़ी में चक्के की नाभि के दोनों ओर उस छेद के मुँह पर खोदकर बैठाई जाती है जिसमें धुरे का सिरा रहता है।				 | 
			
			
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					मयन					 :
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					पुं० [सं० मदन] कामदेव।				 | 
			
			
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					मयनी					 :
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					स्त्री०=मैना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					मयमंत, मयमत्त					 :
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					वि० [सं० मदमत्त] मस्त। मदमत्त।				 | 
			
			
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					मयस्सर					 :
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					वि० [अ०] १. हाथ में आया हुआ। प्राप्त। लब्ध।				 | 
			
			
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					मया					 :
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					स्त्री० [सं०√मय्+क+टाप्] चिकित्सा। इलाज। स्त्री० [सं० माया] १. माया। भ्रमजाल। २. ममता के कारण होनेवाला स्नेह। प्रेम का पाशा या बन्धन। २. अनुग्रहपूर्ण मनोभाव। प्रेम-भाव। उदा०—जा कहुँ मया करहु भलि सोई।—जायसी। ४. जगत्। संसार। ५. जीवनी-शक्ति। प्राण। ६. सांसारिक धन-सम्पत्ति।				 | 
			
			
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					मयाजिय					 :
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					वि० [सं० मायाजीव] १. जिसके मन में माया या मोह हो। २. अनुग्रह या कृपा का भाव रखनेवाला।				 | 
			
			
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					मयार					 :
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					वि० [सं० माया; हिं० माया] [स्त्री० मयारी] दयार्द्र। दयालु।				 | 
			
			
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					मयारी					 :
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					स्त्री० [देश०] १. वह शाखा या धरन जिसपर हिंडोले की रस्सी लटकाई जाती है। २. धरन।				 | 
			
			
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					मयारू					 :
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					वि०=मयार (दयार्द्र])।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					मयी					 :
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					स्त्री० [सं० मय+ङीष्] ऊँटनी। अव्य० सं० ‘मय’ का स्त्री०। जैसे—दयामयी माता।				 | 
			
			
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					मयु					 :
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					पुं० [सं०√मय् (गमन् करना)+कु वा√मि (मान करना)+उ] १. किन्नर। २. मृग। हिरन।				 | 
			
			
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					मयु-राज					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] कुबेर।				 | 
			
			
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					मयूख					 :
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					पुं० [सं०√मा (मान)+ऊख, मय्-आदेश] १. किरण। रश्मि। २. चमक। दीप्ति। ३. प्रकाश। रोशनी। ४. ज्वाला। लपट। ५. शोभा। ६. काँटा या कील। ७. पर्वत। पहाड।				 | 
			
			
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					मयूर					 :
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					पुं० [सं० मयू√रु (शब्द)+क, पृषो० सिद्धि] [स्त्री० मयूरी] १. मोर। २. मयूर-शिखा नामक क्षुप। ३. पुराणानुसार सुमेरु पर्वत के अन्दर का एक पर्वत।				 | 
			
			
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					मयूर-केतु					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] स्कंद का एक नाम।				 | 
			
			
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					मयूर-गति					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] चौबीस अक्षरों की एक वृत्ति जिसके प्रत्येक चरण में आदि में पाँच यगण, फिर मगण, यगण और अन्त ममें भगण होता है (य य य य य म य भ)।				 | 
			
			
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					मयूर-ग्रीवक					 :
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					पुं० [सं० ब० स०+कन्, हृस्व] तूतिया।				 | 
			
			
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					मयूर-नृत्य					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] एक प्रकार का नाच जिसमें थिरकन अधिक होती है।				 | 
			
			
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					मयूर-पदक					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] नखाघात। नखक्षत।				 | 
			
			
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					मयूर-रथ					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] कार्तिकेय। स्कंद।				 | 
			
			
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					मयूर-शिखा					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०] मोरा शिखा नामक क्षुप।				 | 
			
			
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					मयूरक					 :
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					पुं० [सं०] १. अपामार्ग। चिचड़ा। २. तूतिया। ३. मयूर। मोर। ४. मयूर। शिखा नामक क्षुप।				 | 
			
			
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					मयूरगामी (मिन्)					 :
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					पुं० [सं० मयूर√गम् (जाना)+णिनि,] मयूर। पर सवारी करनेवाले कार्तिकेय।				 | 
			
			
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					मयूरचढ़					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] मयू शिखा।				 | 
			
			
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					मयूरचूड़ा					 :
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					स्त्री० [सं० मयूरचूड़ा+टाप्] मयूर शिखा नामक क्षुप।				 | 
			
			
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					मयूरजंघ					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] सोनापाढ़ा। श्योनाक।				 | 
			
			
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					मयूरिका					 :
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					स्त्री० [सं० मयूर+ठन्—इक, +टाप्] १. अंबष्ठा। मोइया। २. एक प्रकार का जहरीला कीड़ा।				 | 
			
			
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					मयूरेश					 :
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					पुं० [सं० मयूर-ईश, ष० त०] कार्तिकेय।				 | 
			
			
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					मयेश्वर					 :
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					पुं० [सं० मय-ईश्वर, ष० त०] मय दानव।				 | 
			
			
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