शब्द का अर्थ
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					मयूर					 :
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					पुं० [सं० मयू√रु (शब्द)+क, पृषो० सिद्धि] [स्त्री० मयूरी] १. मोर। २. मयूर-शिखा नामक क्षुप। ३. पुराणानुसार सुमेरु पर्वत के अन्दर का एक पर्वत।				 | 
			
			
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					मयूर-केतु					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] स्कंद का एक नाम।				 | 
			
			
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					मयूर-गति					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] चौबीस अक्षरों की एक वृत्ति जिसके प्रत्येक चरण में आदि में पाँच यगण, फिर मगण, यगण और अन्त ममें भगण होता है (य य य य य म य भ)।				 | 
			
			
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					मयूर-ग्रीवक					 :
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					पुं० [सं० ब० स०+कन्, हृस्व] तूतिया।				 | 
			
			
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					मयूर-नृत्य					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] एक प्रकार का नाच जिसमें थिरकन अधिक होती है।				 | 
			
			
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					मयूर-पदक					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] नखाघात। नखक्षत।				 | 
			
			
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					मयूर-रथ					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] कार्तिकेय। स्कंद।				 | 
			
			
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					मयूर-शिखा					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०] मोरा शिखा नामक क्षुप।				 | 
			
			
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					मयूरक					 :
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					पुं० [सं०] १. अपामार्ग। चिचड़ा। २. तूतिया। ३. मयूर। मोर। ४. मयूर। शिखा नामक क्षुप।				 | 
			
			
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					मयूरगामी (मिन्)					 :
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					पुं० [सं० मयूर√गम् (जाना)+णिनि,] मयूर। पर सवारी करनेवाले कार्तिकेय।				 | 
			
			
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					मयूरचढ़					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] मयू शिखा।				 | 
			
			
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					मयूरचूड़ा					 :
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					स्त्री० [सं० मयूरचूड़ा+टाप्] मयूर शिखा नामक क्षुप।				 | 
			
			
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					मयूरजंघ					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] सोनापाढ़ा। श्योनाक।				 | 
			
			
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					मयूरिका					 :
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					स्त्री० [सं० मयूर+ठन्—इक, +टाप्] १. अंबष्ठा। मोइया। २. एक प्रकार का जहरीला कीड़ा।				 | 
			
			
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					मयूरेश					 :
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					पुं० [सं० मयूर-ईश, ष० त०] कार्तिकेय।				 | 
			
			
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