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मीमांसा  : स्त्री० [सं०] १. वह गम्भीर मनन और विचार जो किसी विषय के मूल तत्त्व या तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए किया जाता है। किसी बात या विषय का ऐसा विवेचन जिसके द्वारा कोई निर्णय किया या परिणाम निकाला जाता हो। २. छः प्रसिद्ध भारतीय दर्शनों में से एक दर्शन जो मूलतः पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा नामक दो भागों में विभक्त था। विशेष—पूर्व मीमांसा के कर्ता जैमिनि और उत्तर मीमांसा के कर्त्ता बादरायण कहे जाते हैं। दोनों के विवेच्य विषय एक-दूसरे से बहुत भिन्न है। पूर्व मीमांसा में मुख्यतः वैदिक कर्मकांड का विवेचन है, इसीलिए इसे कर्म मीमांसा भी कहते हैं। इसमें वेदों के यज्ञपरक संदिग्ध स्थलों का विचार करके उनका स्पष्टीकरण किया गया है इसमें आत्मा, जगत्, ब्रह्म आदि का विवेचन नहीं है, और वेदों तथा उसके मंत्रों को ही नित्य तथा सर्वस्य माना है, इसीलिए इसकी गणना अनीश्वरवादी दर्शनों में होती है। इसी लिए इसे कर्म-मीमांसा भी कहते हैं। इसके विपरीत उत्तर मीमांसा में ब्रह्म अथवा विश्वात्मा का विवेचन है, और इसीलिए यह वेदांत दर्शन कहलाता तथा ‘पूर्व मीमांसा’ से भिन्न तथा स्वतंत्र दर्शन माना जाता है। आजकल ‘मीमांसा’ शब्द से पूर्व मीमांसा ही अभिप्रेत होता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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